पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१०६

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बात का विश्वास पैदा कर दिया। इसके बाद उसने अपना हाथ-पैर खोल देने के लिए नानक से कहा, नानक ने उसके हाथ-पैर खोल दिये और मनोरमा ने अपनी उँगली से वह जहरीली अंगूठी, जिसको निकाल लेना भूतनाथ भूल गया था, उतार कर नानक की उँगली में पहना देने के बाद नानक का मुंह चूमकर कहा, "इसी समय से मैंने तुम्हें अपना पति मान लिया। अब तुम मेरे घर चलो, बलभद्रसिह और इन्दिरा को लेकर अपने बाप के पास भेज दो, मेरे घरबार के मालिक बनो और इसके बाद जो कुछ मुझे कहो, मैं करने को तैयार हूँ। अब इससे बढ़कर सन्तोष दिलाने वाली बात मैं क्या कह सकती हूँ!"

इतना कहकर मनोरमा ने नानक के गले में हाथ डाल दिया और पुनः उसका मुंह चूमकर कहा, "प्यारे, मैं तुम्हारी हो चुकी, अब तुम जो चाहो सो करो!"

अहा, स्त्री भी दुनिया में क्या चीज है ! बड़े-बड़े होशियारों, चालाकों, ऐयारों, अमीरों, पहलवानों और बहादुरों को बेवकूफ बनाकर मटियामेट कर देने की शक्ति जितनी स्त्री में है उतनी किसी में नहीं। इस दुनिया में वह बड़ा ही भाग्यवान है जिसके गले में दुष्टा और धूर्त स्त्री की फांसी नहीं लगी। देखिए, दुर्दैव के मारे कम्बख्त नानक ने क्या मुंह की खाई है और धूर्ता मनोरमा ने कैसा उसका मुंह काला किया। मजा तो यह है कि स्त्री-रत्न पाने के साथ ही दौलत भी पाने की खुशी ने उसे और भी अन्धा बना दिया और जिस समय मनोरमा ने जहरीली अँगूठी नानक की उँगली में पहनाकर उसके गुण की प्रशंसा की उस समय तो नानक को निश्चय हो गया कि बस यह हमारी हो चुकी। उसने सोचा कि इसे अपनाने में अगर भूतनाथ रंज भी हो जाय तो कोई परवाह की बात नहीं है और रंज होने का सबब ही क्या है बल्कि उसे तो खुश होना चाहिए क्योंकि मेरे ही सबब से उसकी जान बचेगी।

नानक ने भी मनोरमा के गले में हाथ डाल के उससे कुछ ज्यादा ही प्रेम का बरताव किया जो मनोरमा ने नानक के साथ किया था और तब कहा, "अच्छा तो अब मैं भी तुम्हारा हो चुका, तुम भी जहाँ तक जल्द हो सके अपना वायदा पूरा करो।"

मनोरमा--मैं तैयार हूँ, अपने साथी लण्ठाधिराज को बिदा करो और मेरे साथ जमानिया के तिलिस्मी बाग की तरफ चलो।

नानक--वहाँ क्या है?

मपोरमा--बलभद्रसिंह और इन्दिरा उसी में कैद हैं। पहले उन्हीं को छुड़ाकर तुम्हारे बाप को खुश करना उचित समझती हूँ।

नानक--हाँ यह राय बहुत अच्छी है, मैं अभी अपने साथी को समझा-बुझाकर बिदा करता हूं।

इतना कहकर नानक अपने साथी के पास चला जो गाँजे का दम लगा रहा था। गनोरमा का हाल नमक-मिर्च लगाकर उससे कहा और समझा-बुझाकर उसी अड्डे पर जहाँ से आया था चले जाने के लिए राजी किया बल्कि उसे बिदा करके पूनः मनोरमा के पास चला आया।

मनोरमा--तुम्हारा साथी तो सहज ही में चला गया।