नानक--आखिर वह मेरे बाप का नौकर ही तो है, अतः जो कुछ मैं कहूँगा उसे मानना ही पड़ेगा। हाँ, तो अब तुम भी चलने के लिए तैयार हो जाओ।
मनोरमा--(खड़ी होकर) मैं तैयार हूँ, आओ।
नानक--ऐसे नहीं, मेरे बटुए में कुछ खाने की चीजें मौजूद हैं, लोटा-डोरी भी तैयार है, वह देखो सामने कुआँ भी है, अस्तु, कुछ खा-पीकर आत्मा को हरा कर लेना चाहिए, जिसमें सफर की तकलीफ मालूम न पड़े।
मनोरमा--जो आज्ञा।
नानक ने बटुए में से कुछ खाने को निकाला और कुएँ में से जल खींचकर मनोरमा के सामने रक्खा।
मनोरमा--पहले तुम खा लो, फिर तुम्हारा जूठा जो बचेगा उसे मैं खाऊँगी। नानक-नहीं-नहीं, ऐसा क्या, तुम भी खाओ और मैं भी खाऊँ।
मनोरमा--ऐसा कदापि न होगा, अब मैं तुम्हारी स्त्री हो चुकी और सच्चे दिल से हो चुकी, फिर जैसा मेरा धर्म है वैसा ही करूंगी। नानक ने बहुत कहा मगर मनोरमा ने कुछ भी न सुना। आखिर नानक को पहले खाना पड़ा। थोड़ा-सा खाकर नानक ने जो कुछ छोड़ दिया, मनोरमा उसी को खाकर चलने के लिए तैयार हो गई। नानक ने घोड़ा कसा और दोनों आदमी उसी पर सवार होकर जंगल ही जंगल पूरब की तरफ चल निकले। इस समय जिस राह से मनोरमा कहती थी नानक उसी राह से जाता था। शाम होते-होते ये दोनों उसी खंडहर के पास पहुँचे जिसमें हम पहले भूतनाथ और शेरसिंह का हाल लिख आए हैं, जहाँ राजा वीरेन्द्रसिंह को शिवदत्त ने घेर लिया था, जहाँ से शिवदत्त को रूहा ने चकमा देकर फंसाया था, या जिसका हाल ऊपर कई दफे लिखा जा चुका है।
मनोरमा--अब यहाँ ठहर जाना चाहिए !
नानक--क्यों?
मनोरमा--यह तो आपको मालूम हो ही चुका होगा कि इस खंडहर में से एक सुरंग जमानिया के तिलिस्मी बाग तक गई हुई है।
नानक--हाँ, इसका हाल मुझे अच्छी तरह मालूम हो चुका है। इसी सुरंग की राह से मायारानी या उसके मददगारों ने पहुंचकर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह के साथ और भी कई आदमियों को गिरफ्तार कर लिया था।
मनोरमातो--तो अब मैं चाहती हूँ कि उसी राह से जमानिया वाले तिलिस्मी बाग के दूसरे दर्जे में पहुँचूं और दोनों कैदियों को इस तरह निकाल बाहर करूँ कि किसी को किसी तरह का गुमान न होने पावे। मैं इस सुरंग का हाल अच्छी तरह जानती हूँ, इस राह से कई दफे आई और गई हूँ। इतना ही नहीं बल्कि इस सुरंग की राह से जाने में और भी एक बात का सुभीता है।
नानक--वह क्या?
मनोरमा--इस सुरंग में बहुत-सी चीजें ऐसी हैं जिन्हें हम लोग हजारों रुपये खर्चने और वर्षों परेशान होने पर भी नहीं पा सकते और वे चीजें हम लोगों के बड़े काम