पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
108
 

की हैं, जैसे ऐयारी के काम में आने लायक तरह-तरह की रोगनी पोशाकें जो न तो पानी में भीगें और न आग में जलें, एक से एक बढ़ के मजबूत और हलके कमन्द, पचासों तरह के नकाब, तरह-तरह की दवाइयाँ, पचासों किस्म के अनमोल इत्र जो अब मयस्सर नहीं हो सकते, इनके अतिरिक्त ऐश व आराम की भी सैकड़ों चीजें तुमको दिखाई देंगी जिन्हें अपने साथ लेते चलेंगे, (धीरे से) और मायारानी का एक 'जवाहिरखाना' भी इस सुरंग में है।

नानक--वाह-वाह ! तब तो जरूर इसी सुरंग की राह चलना चाहिए। इससे बढ़कर 'एक पन्थ दो काज' हो ही नहीं सकता!

मनोरमा--और इन सब चीजों की बदौलत हम लोग अपनी सूरत भी अच्छी तरह बदल लेंगे और दो-चार हरबे भी ले लेंगे।

नानक--ठीक है, मैं इस राह से जाने के फायदों को अच्छी तरह समझ गया, मगर हरवों की हमें कुछ भी जरूरत नहीं है क्योंकि कमलिनी का दिया हुआ एक खंजर ही मेरे पास ऐसा है जिसके सामने हजारों लाखों बल्कि करोड़ों हरबे झख मारें!

मनोरमा--(आश्चर्य से) सो क्या ? वह कैसा खंजर है और कहाँ है?

नानक--(खंजर दिखाकर) यह मेरे पास मौजूद है। जिस समय तुम इसके गुण सुनोगी तो आश्चर्य करोगी।

इतना कहकर नानक घोड़े से नीचे उतर पड़ा और सहारा देकर मनोरमा को भी नीचे उतारा। मनोरमा ने एक पेड़ के नीचे बैठ जाने की इच्छा प्रकट की और कहा कि घोड़े को छोड़ देना चाहिए क्योंकि इसकी अब हम लोगों को जरूरत नहीं रही।

नानक ने मनोरमा की बात मंजूर की अर्थात घोड़े को छोड़ दिया और कुछ देर तक आराम लेने की नीयत से दोनों आदमी एक पेड़ के नीचे बैठ गये। मनोरमा ने तिलिस्मी खंजर का गुण पूछा और नानक ने शेखी के साथ बखान करना शुरू किया और अन्त में खंजर का कब्जा दबाकर बिजली की रोशनी भी पैदा कर मनोरमा को दिखाया। चमक से मनोरमा की आँखें चौंधिया गईं और उसने दोनों हाथों से अपना मुंह ढाँप लिया। जब वह चमक बन्द हो गई तो नानक के कहने से मनोरमा ने आँखें खोली और खंजर की तारीफ करने लगी।

थोड़ी देर तक आराम करने के बाद दोनों आदमी खंडहर के अन्दर गये और उसी मामूली रास्ते से जिसका हाल कई दफे लिखा जा चुका है उसी तहखाने के अन्दर गए जिसमें शेरसिंह रहा करते थे या जिसमें से इन्द्रजीत और आनन्दसिंह गायब हुए थे। यह तो पाठकों को मालूम ही है कि राजा वीरेन्द्रसिंह की सवारी आने के कारण खंडहर की अवस्था बहुत-कुछ बदल गई थी और अभी तक बदली हुई है मगर इस तहखाने की हालत में किसी तरह का फर्क नहीं पड़ा था।

हमारे पाठक भूले न होंगे कि इस तहखाने में उतरने के लिए जो सीढ़ियाँ थीं उनके नीचे एक छोटी-सी कोठरी थी जिसमें शेरसिंह अपना असबाब रक्खा करते थे और जिसमें से आनन्दसिंह, कमला और तारासिंह गायब हुए थे। मनोरमा की आज्ञानुसार नानक ने अपने ऐयारी के बटुए में से मोमबत्ती निकलकर जलाई और मनोरमा के पीछे-