पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१०९

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पीछे उसी कोठरी में गया। यह कोठरी बहुत ही छोटी थी और इसके चारों तरफ दीवार बहुत साफ और संगीन थी। मनोरमा ने एक तरफ की दीवार पर हाथ रखकर कोई खटका या किसी पत्थर को दबाया जिसका हाल नानक को कुछ भी मालूम न हुआ मगर एक पत्थर की चट्टान भीतर की तरफ हटकर बगल में हो गई और अन्दर जाने के लिए रास्ता निकल आया। मनोरमा के पीछे-पीछे नानक उस कोठरी के अन्दर चला गया और इसके साथ ही वह पत्थर की सिल्ली बिना हाथ लगाये अपने ठिकाने चली गई तथा दरवाजा बन्द हो गया। मनोरमा से नानक ने उस दरवाजे को खोलने और बन्द करने की तरकीब पूछी और मनोरमा ने उसका भेद बता दिया बल्कि उस दरवाजे को एक दफे खोल के और बन्द करके भी दिखा दिया। इसके बाद दोनों आगे की तरफ बढ़े। इस समय जिस जगह ये दोनों थे, वह एक लम्बा-चौड़ा कमरा था, मगर उसमें किसी तरफ जाने के लिए कोई दरवाजा दिखाई नहीं देता था, हाँ एक तरफ दीवार में एक बहुतबड़ी आलमारी जरूर बनी हुई थी और उसका पल्ला किसी खटके के दबाने से खुला करता था। मनोरमा ने उसके खोलने की तरकीब भी नानक को बताई और नानक ही के हाथ से उसका पल्ला भी खुलवाया। पल्ला खुलने पर मालूम हुआ कि यह भी एक दरवाजा है और इसी जगह से सुरंग में घुसना होता है। दोनों आदमी सुरंग के अन्दर रवाना हुए। यह सुरंग इस लायक थी कि तीन आदमी एक साथ मिलकर जा सकें।

लगभग पचास कदम जाने के बाद फिर एक कोठरी मिली जो पहली कोठरियों की बनिस्बत ज्यादा लम्बी-चौड़ी थी। इसमें चारों तरफ कई खुली आलमारियाँ थीं जो पचासों किस्म की चीजों से भरी हुई थीं। किसी में तरह-तरह के हरबे थे, किसी में ऐयारी का सामान, किसी में रंग-बिरंग की बनावटी मूंछे और नकाबें इत्यादि थीं और कई आलमारियाँ बोतलों और शीशियों से भरी हुई थीं। इन सामानों को देखकर नानक ने मनोरमा से कहा, "यह सब तो है, मगर उस जवाहिरखाने का भी कहीं पता-निशान है जिसका होना तुमने बयान किया था!"

मनोरमा--मैंने आपसे झूठ नहीं कहा था, वह जवाहिरखाना भी इसी सुरंग में मौजूद है।

नानक--मगर कहाँ है?

मनोरमा--इस सुरंग में और थोड़ी दूर जाने के बाद इसी तरह का एक कमरा पुनः मिलेगा, उसी कमरे में आप उन सब चीजों को देखेंगे। इस सुरंग में जमानिया पहँचने तक इस तरह के ग्यारह अड्डे या कमरे मिलेंगे जिनमें करोड़ों रुपये की सम्पत्ति देखने में आवेगी।

नानक--(लालच के साथ) जबकि तुम्हें यहाँ का रास्ता मालूम है और ऐसीऐसी नादिर चीजें तुम्हारी जानी हुई हैं तो इन सभी को उठाकर अपने घर में क्यों नहीं ले जाती?

मनोरमा--मायारानी की बदौलत मुझे किसी चीज की कमी नहीं है। रुपये-पैसे गहने जवाहिरात और दौलत से मेरी तबीयत भरी हुई है। इन सब चीजों की मैं कोई हकीकत नहीं समझती।