नानक--बेशक ऐसा ही है!
मनोरमा--(बोतल और शीशियों से भरी हुई एक आलमारी की तरफ इशारा करके) देखो, ये बोतलें ऐशोआराम की जान खुशबूदार चीजों से भरी हुई हैं।
इतना कह मनोरमा फुर्ती के साथ उस आलमारी के पास चली गई और एक बोतल उठाकर उसका मुंह खोल और खूब सूंघकर बोली, "अहा, सिवाय मायारानी के और तिलिस्म के राजा के ऐसी खुशबूदार चीजें और किसे मिल सकती हैं?"
इतना कहकर वह बोतल उसी जगह मुँह बन्द करके रख दी और दूसरी बोतल उठाकर नानक के पास ले चली, मगर वह बोतल उसके हाथ से छूटकर जमीन पर गिर पड़ी या शायद उसने जान-बूझकर ही गिरा दी। बोतल गिरने के साथ ही टूट गई और उसमें का खुशबूदार तेल चारों तरफ जमीन पर फैल गया। मनोरमा बहुत रंज और अफसोस करने लगी और उसकी मुरौवत से नानक ने भी रंज दिखाया। उस बोतल में जो तेल था वह बहुत ही खुशबूदार और इतना तेज था कि गिरने के साथ ही उसकी खुशबू तमाम कमरे में फैल गई गई और नानक उस खुशबू की तारीफ करने लगा।
निःसन्देह मनोरमा ने नानक को पूरा उल्लू बनाया। पहले जो बोतल खोल के मनोरमा ने संघी थी उसमें भी एक प्रकार की खूशबूदार चीज थी मगर उसमें यह असर था कि उसके सूंघने के बाद दो घण्टे तक किसी तरह की बेहोशी का असर संघने वाले पर नहीं हो सकता था, और जो दूसरी बोतल उसने हाथ से गिरा दी थी उसमें बहुत तेज बेहोशी का असर था जिसने नानक को तो चौपट ही कर दिया। वह उस खुशबू की तारीफ करता-करता ही जमीन पर लम्बा हो गया, मगर मनोरमा पर उस दवा का कुछ भी असर न हुआ क्योंकि वह पहले ही से एक दूसरी दवा सूंघकर अपने दिमाग का बन्दोबस्त कर चुकी थी। नानक के हाथ से मनोरमा ने मोमबत्ती ले ली और एक किनार जमीन पर जमा दी।
जब नानक अच्छी तरह बेहोश हो गया तो मनोरमा ने उसके हाथ से अपनी अँगूठी उतार ली और फिर तिलिस्मी खंजर के जोड़ की अंगूठी भी उतार लेने के बाद तिलिस्मी खंजर भी अपने कब्जे में कर लिया और इसके बाद एक लम्बी साँस लेकर कहा, "अब कोई हर्ज की बात नहीं है!"
थोड़ी देर तक कुछ सोचने-विचारने के बाद मनोरमा ने एक हाथ में मोमबत्ती ली और दूसरे हाथ से नानक का पैर पकड़ घसीटती हुई बाहर वाली कोठरी में ले आई। जिसमें से निकली थी उस कोठरी का दरवाजा बन्द कर दिया और साथ ही इसके एक तरकीब ऐसी और भी कर दी कि नानक पुनः उस दरवाजे को खोल न सके।
इन कामों से छुट्टी पाने के बाद मनोरमा ने नानक की मुश्कें बाँधीं और हर तरह से बेकाबू करने के बाद लखलखा सुंघाकर होश में लाने का उद्योग करने लगी। थोड़ी ही देर बाद नानक होश में आ गया और अपने को हर तरह से मजबूर और सामने हाथ में उसी का जूता लिए मनोरमा को मौजूद पाया!
नानक--(आश्चर्य से) यह क्या ! तुमने मुझे धोखा दिया!
मनोरमा--(हँसकर) जी नहीं, यह तो दिल्लगी की जा रही है! क्या तम नहीं