पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१११

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जानते कि ब्याह-शादी में लोग दिल्लगी करते हैं ? मेरा कोई ऐसा नातेदार तो है नहीं जो तुमसे दिल्लगी करके ब्याह की रस्म पूरी करे। इसलिए मैं स्वयं ही इस रस्म को मुझ पूरा करना चाहती हूँ।

इतना कहकर मनोरमा तेजी के साथ ब्याह की रस्में पूरी करने लगी। जब नानक सिर की खुजलाहट से दुखी हो गया तो हाथ जोड़कर बोला, "ईश्वर के लिए अब पर दया करो, मैं ऐसी शादी से बाज आया, मुझसे बड़ी भूल हुई।"

मनोरमा--(रुककर) नहीं, घबराने की कोई बात नहीं है। मैं तुम्हारे साथ किसी तरह की बुराई न करूंगी, बल्कि भलाई करूंगी। मैं देखती हूँ कि तुम्हारे हमजोली लोग सच्ची दिल्लगी से तुम्हें बड़ा दुख देते हैं और तुम्हारी स्त्री भी यद्यपि तुम्हारे ही नातेदारों और मित्रों को प्रसन्न करके गहने, कपड़े तथा सौगात से तुम्हारा घर भरती है, मगर तुम्हारी नाक का कुछ भी मुलाहिजा नहीं करती, अतएव तुम्हारी नाक पर हरदम शामत आती ही रहती है, इसलिए मैं दया करके तुम्हारी नाक ही को जड़ से उड़ा देना पसन्द करती हूँ जिसमें आइंदा के लिए तुम्हें कोई कुछ कह न सके। हां, इतना ही नहीं, बल्कि तुम्हारे साथ मैं एक नेकी और भी करना चाहती हूँ जिसका ब्यौरा अभी कह देना उचित नहीं समझते।

नानक--क्षमा करो, क्षमा करो, मैं हाथ जोड़कर कहता हूँ कि मुझे माफ करो। मैं कसम खाकर कहता हूँ कि आज से मैं अपने को तुम्हारा गुलाम समझूगा और जो कुछ तुम कहोगी वही करूँगा।

मनोरमा--(हँसकर) अच्छा तो आज से तू मेरा गुलाम हुआ!

नानक--बेशक मैं आज तुम्हारा गुलाम हुआ, असली क्षत्री होऊँगा तो तुम्हारे हुक्म से मुंह न मोडूंगा।

मनोरमा--(हँसती हुई) इसी में तो मुझको शक है कि तेरी जात क्या है। अतः कोई चिन्ता नहीं, मैं तुझे हुक्म देती हूँ कि दो महीने तक अपने घर मत जाना और इस बीच में अपने बाप या किसी दोस्त, नातेदार से भी न मिलना, इसके बाद जो इच्छा हो करना, मैं कुछ न बोलूंगी, मगर मुझसे और मेरे पक्षपातियों से दुश्मनी का इरादा कभी न करना। नानक-ऐसा ही होगा।

मनोरमा--अगर मेरी आज्ञा के विरुद्ध कोई काम करेगा तो तुझे जान से मार डालूंगी, इसे खूब याद रखना।

नानक--मैं खूब याद रखूगा और तुम्हारी आज्ञा के विरुद्ध कोई काम न करूंगा, परन्तु कृपा करके मेरा खंजर तो मुझे दे दो!

मनोरमा--(क्रोध से) अब यह खंजर तुझे नहीं मिल सकता। खबरदार, इसके मांगने या लेने की इच्छो न करना ! अच्छा अब मैंजाती हूँ।

इतना कहकर मनोरमा ने तिलिस्मी खंजर नानक के बदन से लगा दिया और जब वह बेहोश हो गया तो उसके हाथ-पैर खोल दिये, जलती हुई मोमबत्ती एक कोने में खड़ी कर दी और वहां से रवाना होकर खंडहर के बाहर निकल आई। घोड़े को अभी