तक खंडहर के पास चरते देखा, उसके पास चली गयी, अयाल पर हाथ फेरा, दो-चार दफे थपथपाया और फिर सवार होकर पश्चिम की तरफ रवाना हो गई।
इधर नानक भी थोड़ी देर बाद होश में आया। मोमबत्ती एक किनारे जल रही थी, उसे उठा लिया और अपनी किस्मत को धिक्कार देता हुआ खंडहर के बाहर होकर डरता और कांपता हुआ एक तरफ को चला गया।
10
कुँअर इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह और राजा गोपालसिंह बात कर ही रहे थे कि वही औरत चमेली की टट्टियों में फिर दिखाई दी और इन्द्रजीतसिंह ने चौंककर कहा, "देखिए, वह फिर निकली!"
राजा गोपालसिंह ने बड़े गौर से उस तरफ देखा और यह कहते हुए उस तरफ रवाना हुए कि "आप दोनों भाई इसी जगह बैठे रहिये, मैं इसकी खबर लेने जाता हूं।"
जब तक राजा गोपालसिंह चमेली की टट्टी के पास पहुँचे, तब तक वह औरत पुनः अन्तर्धान हो गयी। गोपालसिंह थोड़ी देर तक उन्हीं पेड़ों में घूमते-फिरते रहे इसक बाद इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह के पास लौट आए।
इन्द्रजीतसिंह--कहिये, क्या हुआ?
गोपालासिंह--हमारे पहुँचने के पहले ही वह गायब हो गई, गायब क्या हो गई बस, उसी दर्जे में चली गई जिसमें देवमन्दिर है। मेरा इरादा तो हुआ कि उसका पीछा करूं, मगर यह सोचकर लौट आया कि उसका पीछा करके उसे गिरफ्तार करना घण्ट दो घण्टे का काम नहीं है बल्कि दो-चार पहर या दो-एक दिन का काम है, क्योंकि देवमन्दिर वाले दर्जे का बहुत बड़ा विस्तार है तथा छिप रहने योग्य स्थानों की भी वहा कमी नहीं है, और मुझे इस समय इतनी फुरसत नहीं है। इसका खुलासा हाल तो इस समय में आप लोगों से न कहूँगा। हाँ, इतना जरूर कहूँगा कि जिस समय मैं अपना तिलिस्मी किताब लेने गया था और उसके न मिलने से दुःखी होकर लौटना चाहता था, उसी समय एक और भी दुःखदाई खबर सुनने में आई जिसके सबब से मुझे कुछ दिन के लिए जमानिया तथा आप दोनों भाइयों का साथ छोड़ना आवश्यक हो गया है और दा घण्टे के लिए भी यहाँ रहना मैं पसन्द नहीं करता। फिर भी कोई चिन्ता की बात नहीं है. आप लोग शौक से इस तिलिस्म के जिस हिस्से को तोड़ सकें तोड़ें, मगर इस औरत का. जो अभी दिखाई दी थी, बहुत ध्यान रखें। मेरा दिल यही कहता है कि मेरी तिलिस्मी किताब इसी औरत ने चुराई है। क्योंकि यदि ऐसा न होता तो यह यहाँ तक कदापि न पहुँच सकती।
इन्द्रजीतसिंह--यदि ऐसा है तो कह सकते हैं कि वह हम लोगों के साथ भी दगा करना चाहती है।
च० स०-4-7