पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/११३

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गोपालसिंह--निःसन्देह ऐसा ही है, परन्तु यदि आप लोग उसकी तरफ से सावधान रहेंगे तो वह आप लोगों का कुछ भी न बिगाड़ सकेगी, साथ ही इसके यदि आप उद्योग में लगे रहेंगे तो वह किताब भी जो उसने चुराई है, हाथ लग जायगी।

इन्द्रजीत सिंह--जो कुछ आपने आज्ञा दी है मैं उस पर विशेष ध्यान रखूगा मगर मालूम होता है कि आपने कोई बहुत दुःखदाई खबर सुनी है, क्योंकि यदि ऐसा न होता तो इस अवस्था में और अपनी तिलिस्मी किताब खो जाने की तरफ ध्यान न देकर आप यहाँ से जाने का इरादा न करते !

आनन्दसिंह--और जब आप कह ही चुके हैं कि उसका खुलासा हाल न कहेंगे तो हम लोग पूछ भी नहीं सकते।

गोपालसिंह--निःसन्देह ऐसा ही है, मगर कोई चिन्ता की बात नहीं, आप लोग बुद्धिमान हैं और जैसा उचित समझें करें, हाँ, एक बात मुझे और भी कहनी है !

इन्द्रजीतसिंह--वह क्या?

गोपालसिंह--(एक लपेटा हुआ कागज लालटेन के सामने रखकर) जब मैं उस औरत के पीछे चमेली की टट्टियों में गया तो वह औरत तो गायब हो गई, मगर उसी जगह यह लपेटा हुआ कागज ठीक दरवाजे के ऊपर ही पड़ा हुआ मुझे मिला। पढ़ो तो सही, इसमें क्या लिखा है।

इन्द्रजीतसिंह ने उस कागज को खोलकर पढ़ा, यह लिखा हुआ था--

"यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि न तो आप लोग मुझे जानते हैं और न मैं आप लोगों को जानती हूँ, इसके अतिरिक्त जब तक मुझे इस बात का निश्चय न हो जाय कि आप लोग मेरे साथ किसी तरह की बुराई न करेंगे, तब तक मैं आप लोगों को अपना परिचय भी नहीं दे सकती। हाँ, इतना अवश्य कह सकती हैं कि मैं बहुत दिनों से कैदियों की तरह इस तिलिस्म में पड़ी हूँ। यदि आप लोग दयावान और सज्जन हैं तो मुझे इस कैद से अवश्य छुड़ावेंगे।

-कोई दुःखिनी'

गोपालसिंह--(आश्चर्य से) यह तो एक दूसरी ही बात निकली!

इन्द्रजीतसिंह--ठीक है, मगर इसके लिखने पर हम लोग विश्वास ही क्यों कर सकते हैं!

गोपालसिंह--आप सच कहते हैं, हम लोगों को इसके लिखने वाले पर यकायक विश्वास न करना चाहिए। खैर, मैं जाता हूँ, आप जो उचित समझेंगे करेंगे। आइये, इस समय हम लोग एक साथ बैठ के भोजन तो कर लें, फिर क्या जाने कब और क्योंकर मुलाकात हो।

इतना कहकर राजा गोपालसिंह ने वह चंगेर जो अपने साथ लाये थे और जिसमें खाने की अच्छी-अच्छी चीजें थीं, आगे रखी और तीनों भाई एक साथ भोजन और बीच-बीच में वातचीत भी करने लगे। जब खाने से छुट्टी मिली तो तीनों भाइयों ने नहर में से जल पीया और हाथ-मुंह धोकर निश्चिन्त हुए, इसके बाद कुँअर इन्द्रजीतसिंह और