पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/१३८

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गर्मी की तकलीफ न थी। जब मैं होश में आई, मेरी माँ ने रोना बन्द किया और मुझे बड़ी देर तक धीरज और दिलासा देने के बाद बोली, "बेटी, अगर कोई तुझसे उस कलमदान के बारे में कुछ पूछे तो कह देना कि कलमदान खोला जा चुका है। मगर मैं उसके अन्दर का हाल नहीं जानती। हाँ, मेरी माँ तथा और भी कई आदमी उसका भेद जान चुके हैं। अगर उन आदमियों का नाम पूछे तो कह देना कि मैं नाम नहीं जानती, मेरी माँ को मालूम होगा।" मैं यद्यपि लड़की थी, मगर समझ-बूझ बहुत थी और उस बात को मेरी माँ ने कई दफे अच्छी तरह समझा दिया था। मेरी मां ने कलमदान के विषय में ऐसा कहने के लिए मुझसे क्यों कहा सो मैं नहीं जानती। शायद उससे और दुष्टों से पहले कुछ बातचीत हो चुकी हो। मगर मुझे जो कुछ माँ ने कहा था उसे मैंने अच्छी तरह निबाहा। थोड़ी देर के बाद पाँच आदमी उसी सीढ़ी की राह से धड़धड़ाते हुए नीचे उतर आए और मेरी मां को जबर्दस्ती ऊपर ले गए। मैं जोर-जोर से रोती और चिल्लाती रह गई, मगर उन लोगों ने मेरा कुछ भी खयाल न किया और अपना काम करके चले गए।

मैं उन लोगों की सूरत-शक्ल के बारे में कुछ भी नहीं कह सकती। क्योंकि वे लोग नकाब से अपने चेहरे छिपाये हुए थे। थोड़ी देर के बाद फिर एक नकाबपोश मेरे पास आया, जिसके कपड़े और कद पर खयाल करके मैं कह सकती हूँ कि वह उन लोगों में से नहीं था जो मेरी माँ को लेकर गए थे बल्कि वह कोई दूसरा ही आदमी था। वह नकाबपोश मेरे पास बैठ गया और मुझे धीरज और दिलासा देता हुआ कहने लगा कि "मैं तुझे इस कैद से छुड़ाऊँगा।" मुझे उसकी बातों पर विश्वास हो गया और इसके बाद वह मुझसे बातचीत करने लगा।

नकाबपोश--क्या तुझे उस कमलदान के अन्दर का हाल पूरा-पूरा मालूम है ?

मैं--नहीं। नकाबपोश—क्या तेरे सामने कलमदान खोला नहीं गया था?

मैं--खोला गया था, मगर उसका हाल मुझे नहीं मालूम, हाँ मेरी माँ तथा और कई आदमियों को मालूम है, जिन्हें मेरे पिता ने दिखाया था।

नकाबपोश--उन आदमियों के नाम तू जानती है?

मैं---नहीं। उसने कई दफे कई तरह से उलट-फेर कर पूछा, मगर मैंने अपनी बातों में फर्क न डाला, और तब मैंने उससे अपनी मां का हाल पूछा लेकिन उसने कुछ भी न बताया और मेरे पास से उठकर चला गया। मुझे खूब याद है कि उसके दो पहर बाद मैं जब प्यास के मारे बहत दुःखी हो रही थी, तब फिर एक आदमी मेरे पास आया। वह भी अपने चेहरे को नकाब से छिपाये हुए था। मैं डरी और समझी कि फिर उन्हीं कम्बख्तों में से कोई मुझे सताने के लिए आया है, मगर वह वास्तव में गदाधरसिंह थे और मुझे उस कैद से छडाने के लिए आए थे। यद्यपि मुझे उस समय यह खयाल हुआ कि कहीं यह भी उन दोनों ऐयारों की तरह मुझे धोखा न देते हों जिनकी बदौलत मैं घर से निकल कर कैदखाने में पहुंची थी। मगर नहीं, वे वास्तव में गदाधरसिंह ही थे और उन्हें मैं