भूतनाथ--नहीं, अगर मुझे उसके मरने में कुछ भी शक होता तो मैं अपना नाम भूतनाथ न रखता। केवल इतना ही नहीं, उसने तो मुझे उस समय एक ऐसी बात कही जिससे मेरी बची-बचाई जान भी निकल गई और मैं ऐसा कमजोर हो गया कि उसके साथ लड़ने योग्य भी न रहा।
स्त्री--सो क्या?
भूतनाथ--उसने तुम्हारी तरफ इशारा करके मुझसे कहा कि 'तुम्हारी बहुत ही प्यारी चीज मेरे कब्जे में है जो तुम्हारे बाद बड़ी तकलीफ में पड़ जायेगी और जिसे तुम लामाघाटी में छोड़ आये हो' और यही सबब है कि छूटने के साथ ही सबसे पहले मैं इस तरफ आया, मगर ईश्वर को धन्यवाद है कि तुम उस शैतान के हाथ से बची रहीं और तुम्हें मैं इस समय राजी-खुशी देख रहा हूँ।
स्त्री--उसकी क्या मजाल कि यहाँ आ सके, उसे स्वप्न में भी यहाँ का रास्ता मालूम नहीं हो सकता।
भूतनाथ--सो तो मैं समझता हूँ। परन्तु 'लामाघाटी' का नाम लेने से मुझे उसकी बात पर विश्वास हो गया, मैंने सोचा, यदि वह लामाघाटी तक न गया होता तो लामा- घाटी का नाम भी उसे मालूम न होता और..
स्त्री--नहीं-नहीं, लामाघाटी का नाम किसी दूसरे सबब से उसे मालूम हुआ होगा।
भूतनाथ-–बेशक ऐसा ही है, खैर तुम्हारी तरफ से तो मैं निश्चित हो गया मगर अब अपनी जान बचाने के लिए मुझे असली बलभद्रसिंह का पता लगाना चाहिए।
स्त्री--अब तुम अपना खुलासा हाल उस दिन से कह जाओ जिस दिन से तुम मुझसे जुदा हुए हो।
भूतनाथ ने अपना कुल हाल अपनी स्त्री को कह सुनाया और इसके बाद थोड़ी देर तक बातचीत करके बाहर निकल आया। एक दालान में जिसमें सुन्दर बिछावन बिछा हुआ था और रोशनी बखूबी हो रही थी उसके सब संगी-साथी या सिपाही बैठे उसके आने की राह देख रहे थे। भूतनाथ के आते ही वे सब अदब के तौर पर उठ खड़े हुए तथा वैठने के बाद उसकी आज्ञा पाकर बैठ गये और बातचीत होने लगी।
भूतनाथ--कहो, तुम लोग अच्छे तो हो?
सब--जी,आपके अनुग्रह से हम लोग अच्छे हैं।
भूतनाथ--ऐसा ही चाहिए।
एक--आप इतने दुबले और उदास क्यों हो रहे हैं?
भूतनाथ--मैं एक भारी आफत में फंस गया था बल्कि अभी भी उसमें फंसा ही हुआ हूँ।
सब--सो क्या, सो क्या?
भूतनाथ--मैं तुमसे सब-कुछ कहता हूँ क्योंकि तुम लोग मेरे खैरख्वाह हो और मुझे तुम लोगों का बहुत सहारा रहता है
सब--हम लोग आपके ताबेदार हैं और एक अपने इशारे पर जान देने के लिए