पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/२०८

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अपनी लड़की के समान रखा और ऐयारी की विद्या भी दिल लगाकर सिखलाने लगी, मगर अफसोस, किस्मत ने मुझे बहुत दिनों तक उसके पास रहने नहीं दिया और थोड़े ही समय के बाद (इन्द्रजीतसिंह की तरफ इशारा करके) आपको गया की रानी माधवी ने धोखा देकर गिरफ्तार कर लिया। चम्पा और चपला आपकी खोज में निकलीं, मुझे भी उनके साथ जाना पड़ा और उसी जमाने में मेरा-चम्पा का साथ छूटा।

आनन्दसिंह--तुम्हें यह कैसे मालूम हुआ कि भैया को माधवी ने गिरफ्तार कराया था?

इन्दिरा--माधवी के दो आदमियों को चम्पा और चपला ने अपने काबू में कर लिया। पहले छिपकर उन की बातें सुनीं जिससे विश्वास हो गया कि माधवी के दोनों नौकर कुँअर साहब को गिरफ्तार करने की मुहिम में शरीक थे, मगर फिर भी यह समझ न आया कि जिसके ये लोग नौकर हैं, वह माधवी कौन है और कुंअर साहब को ले जाकर उसने कहाँ रखा है। लाचार चम्पा ने धोखा देकर उन लोगों को अपने काबू में किया और कुंअर साहब का हाल उनसे पूछा। मैंने उन दोनों के जैसा जिद्दी आदमी कोई भी न देखा होगा। आपने स्वयं देखा था कि चम्पा ने उस खोह में उसे कितना दुःख देकर मारा मगर उस कम्बख्त ने ठीक पता नहीं दिया। उस समय वहाँ चम्पा का नौकर भी हब्शी के रूप में काम कर रहा था, आपको याद होगा। आनन्दसिंहः वह माधवी ही का आदमी था ? इन्दिरा-जी हां, और उसकी बातों का आपने दूसरा ही मतलब लगा लिया था।

आनन्दसिंह--अच्छा, ठीक है, फिर उस दूसरे आदमी की क्या दशा हुई, क्योंकि चम्पा ने तो दो आदमियों को पकड़ा था?

इन्दिरा--वह दूसरा आदमी भी चम्पा के हाथ से उसी रोज उसके थोड़ी देर पहले मारा गया था।

आनन्दसिंह--हां, ठीक है, उसके थोड़ी देर पहले चम्पा ने एक और आदमी को मारा था। जरूर यह वही होगा जिसके मुंह से निकले हुए टूटे-फूटे शब्दों ने हमें धोखे में डाल दिया था। अच्छा, उसके बाद क्या हुआ ? तुम्हारा साथ उनसे कैसे छूटा?

इन्दिरा-चम्पा और चपला जब वहाँ से जाने लगी तो ऐयारी का बहुत-कुछ सामान और खाने-पीने की चीजें उसी खोह में रखकर मुझसे कह गईं कि जब तक हम दोनों या दोनों में से कोई एक लौटकर न आवे तब तक तू इसी जगह रहना-इत्यादि, मगर मुझे बहुत दिनों तक उन दोनों का इन्तजार करना पड़ा, यहाँ तक कि जी ऊब गया और मैं ऐयार का कुछ सामान लेकर उस खोह से बाहर निकली क्योंकि चम्पा की बदौलत मुझे कुछ-कुछ ऐयारी भी आ गई थी। जब मैं उस पहाड़ और जंगल को पार करके मैदान में पहुँची तो सोचने लगी कि अब क्या करना चाहिए, क्योंकि बहुत-सी बँधी हुई उम्मीदों का उस समय खून हो रहा था और अपनी मां की चिन्ता के कारण मैं बहुत ही दुखी हो रही थी। यकायक मेरी निगाह एक ऐसी चीज पर पड़ी जिसने मुझे चौंका दिया और मैं

च० स०-4-13