पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/२०९

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घवराकर उस तरफ देखने लगी...

इन्दिरा और कुछ कहना ही चाहती थी कि यकायक जमीन के अन्दर से बड़े जोर- शोर के साथ घड़घड़ाहट की आवाज आने लगी जिसने सभी को चौंका दिया और इन्दिरा घबराकर राजा गोपालसिंह का मुंह देखने लगी। सवेरा हो चुका था और पूरब तरफ से उदय होने वाले सूर्य को लालिमा ने आसमान का कुछ भाग अपनी बारीक चादर के नीचे ढांक लिया था।

गोपालसिंह--(कुमार से) अब आप दोनों भाइयों का यहाँ ठहरना उचित नहीं जान पड़ता, यह आवाज जो जमीन के नीचे से आ रही है निःसन्देह तिलिस्मी कल-पुरजों के हिलने या घूमने के सबब से है। एक तौर पर आप तिलिस्म तोड़ने में हाथ लगा चुके हैं अस्तु अब इस काम में रुकावट नहीं हो सकती। इस आवाज को सुनकर आपके दिल में भी यही खयाल पैदा हुआ होगा, अस्तु अब क्षण भर भी विलम्ब न कीजिए।

कुमार--बेशक ऐसी ही बात है। आप भी यहां से शीघ्र ही चले जाइये। मगर इन्दिरा का क्या होगा?

गोपाल--इन्दिरा को इस समय मैं अपने साथ ले जाता हूँ फिर जो कुछ होगा देखा जायेगा।

कुमार--अफसोस कि इन्दिरा का कुल हाल सुन न सके। खैर, लाचारी है।

गोपालसिंह--कोई चिन्ता नहीं, आप तिलिस्म का काम तमाम करके इसकी माँ को छुड़ावें फिर सब हाल सुन लीजिएगा। हां, आपसे वादा किया था कि अपनी तिलिस्मी किताब आपको पढ़ने के लिए दूंगा मगर वह किताब गायब हो गई थी इसलिए दे न सका था, अब (किताब दिखाकर) इन्दिरा के साथ ही यह किताब भी मुझे मिल गई है। इसे पढ़ने के लिए मैं आपको दे सकता हूँ। यदि आप इसे अपने साथ ले जाना चाहें तो ले जायें।

इन्द्रजीतसिंह--समय की लाचारी इस समय हम लोगों को आपसे जुदा करती है, और यह भी नहीं कह सकता कि पुनः कव आपसे मुलाकात होगी और यह किताब जिसको हम लोग ले जायेंगे कब वापस करने की नौबत आयेगी। तिलिस्मी किताब जो मेरे पास है उसके पढ़ने और बाजे की आवाज के सुनने से मुझे विश्वास होता है कि आपकी किताब पढ़े बिना भी हम लोग तिलिस्म तोड़ सकेंगे। यदि मेरा यह खयाल ठीक है तो आपके पास से यह किताब ले जाकर आपका बहुत बड़ा हर्ज करना समयानुकूल न होगा।

गोपालसिंह--ठीक है, इस किताब के विना आपका कोई खास हर्ज नहीं हो सकता और इसमें कोई शक नहीं कि इसके बिना मैं बे-हाथ-पैर का हो जाऊँगा।

इन्द्रजीतसिंह--तो इस किताब को आप अभी अपने पास ही रहने दीजिए, फिर जब मुलाकात होगी देखा जायगा, अब हम लोग बिदा होते हैं।

गोपालसिंह--खैर, जाइए, हम आप दोनों भाइयों को दयानिधि ईश्वर के सुपुर्द करते हैं।

इसके बाद राजा गोपालसिंह ने जल्दी-जल्दी कुछ बातें दोनों कुमारों को समझा कर विदा किया और आप भी इन्दिरा को साथ ले महल की तरफ रवाना हो गए।