पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/२१३

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"यहाँ से बाहर निकल जाने वाले को खटोली के ऊपर बैठ कर यह ची सीधी घुमानी चाहिए। ची सीधी तरफ घुमाने से यह खंभा खटोली को लिए हुए ऊपर जायगा और उल्टी तरफ घुमाने से यह नीचे की तरफ उतरेगा। पीछे हटने वाले को अब वह रास्ता खुला नहीं मिलेगा जिधर से वह आया होगा।"

पत्र पढ़कर इन्द्रजीतसिंह ने आनन्दसिंह से कहा, "यहाँ से बाहर निकल चलने के लिए यह बहुत अच्छी तरकीब है, अब हम दोनों को भी इसी तरह बाहर हो जाना चाहिए। लो, तुम भी इसे पढ़ लो।

आनन्दसिंह-(पत्र पढ़कर) आइये, इस खटोली में बैठ जाइये!

दोनों कुमार उस खटोली में बैठ गये और इन्द्रजीतसिंह ची घुमाने लगे। जैसे- जैसे चर्बी घुमाते थे, वैसे-वैसे वह खंभा खटोली को लिए हुए ऊपर की तरफ उठता जाता था। जब खंभा कुएँ के बाहर निकल आया, तब अपने चारों तरफ की जमीन और इमारतों को देखकर दोनों कुमार चौंके और इन्द्रजीतसिंह की तरफ देख कर आनन्द- सिंह ने कहा-

आनन्दसिंह--यह तो तिलिस्मी बाग का वही चौथा दर्जा है, जिसमें हम लोग कई दिन तक रह चुके हैं!

इन्द्रजीतसिंह--बेशक वही है, मगर यह खंभा हम लोगों को (हाथ का इशारा करके) उस तिलिस्मी इमारत तक पहुँचावेगा।

पाठक, हम सन्तति के नौवें भाग के पहले बयान में इस बाग के चौथे भाग का हाल जो कुछ लिख चुके हैं, शायद आपको याद होगा। यदि भूल गये हों तो उसे पुनः पढ़ जाइए। उस वयान में यह भी लिखा जा चुका है कि इस बाग के पूरब तरफ वाले मकान के चारों तरफ पीतल की दीवार थी। इसलिए उस मकान का केवल ऊपर वाला हिस्सा दिखाई देता था और कुछ मालूम नहीं होता था कि उसके अन्दर क्या है। हाँ, छत के ऊपर लोहे का एक पतला महराबदार खंभा था, जिसका दूसरा सिरा उसके पास वाले कुएँ के अन्दर गया था। उस मकान के चारों तरफ पीतल की जो दीवार थी उसमें एक बन्द दरवाजा भी दिखाई देता था और उसके दोनों तरफ पीतल के दो आदमी हाथ में नंगी तलवारें लिए खड़े थे, इत्यादि।

यह उसी मकान के साथ वाला कुआँ था, जिसमें से इन्द्रजीतसिंह और आनन्द- सिंह निकले थे। धीरे-धीरे ऊँचे होकर दोनों भाई उस मकान की छत पर जा पहुंचे जिसके चारों तरफ पीतल की दीवार थी। खटोली को मकान की छत पर पहुँचा कर वह खंभा अड़ गया और दोनों कुमारों को उस पर से उतर जाना पड़ा। पहले जब दोनों कुमार इस बाग के (चौथे दरजे के) अन्दर आये थे, तब इस मकान के अन्दर का हाल कुछ जान नहीं सके थे। मगर अब तो इत्तिफाक ने खुद ही इन दोनों को उस मकान में पहुँचा दिया। इसलिए बड़े उत्साह से दोनों भाई इस जगह का तमाशा देखने के लिए तैयार हो गए।

इस मकान की छत पर एक रास्ता नीचे उतर जाने के लिए था। उसी राह से दोनों भाई नीचे वाली मंजिल में उतर कर एक छोटे-से कमरे में पहुंचे। जहाँ की