बाहर निकल चलने के लिए नहीं कह सकता, मगर अव जिस तरह भी हो, उस पिंडी का पता लगाना चाहिए।
पाठक, तिलिस्मी किताब (रिक्तगन्थ) और तिलिस्मी बाजे दोनों से कुमारों को यह मालूम हुआ था कि मनुवाटिका में किसी जगह जमीन पर एक छोटी-सी पिंडी बनी हुई मिलेगी। उसका पता लगाकर उसी को अपने मतलब का दरवाजा समझना है, यहीं सबब था कि दोनों कुमार उस पिण्डी को खोज निकालने की फिक्र में लगे हुए थे, मगर उस पिण्डी का पता नहीं लगता था। लाचार उन्हें कई दिनों तक उस बाग में रहना पड़ा अाखिर एक घनी झाड़ी के अन्दर उस पिण्डी का पता लगा। वह करीब हाथ भर के ऊँची और तीन हाथ के घेरे में होगी और यह किसी तरह भी मालूम नहीं हो रहा था कि वह पत्थर की है या लोहे, पीतल इत्यादि किसी धातु की बनी हुई है। जिस चीज से वह पिण्डी बनी हुई थी उसी चीज से बना हुआ सूर्यसूखी का एक फूल उसके ऊपर जड़ा हुआ था और यही उस पिण्डी की पूरी पहचान थी। आनन्दसिंह ने खुश होकर इन्द्रजीत- सिंह से कहा-
आनन्दसिंह-वाह रे ! किसी तरह ईश्वर की कृपा से इस पिण्डी का पता लगा। मैं समझता हूँ, इसमें आपको किसी तरह का शक न होगा?
इन्द्रजीतसिंह-मुझे किसी तरह का शक नहीं है। यह पिण्डी निःसन्देह वही है, जिसे हम लोग खोज रहे थे। अब इस जमीन को अच्छी तरफ साफ करके अपने सच्चे सहायक रिक्तगन्थ से हाथ धो बैठने के लिए तैयार हो जाना चाहिए।
आनन्दसिंह जी हाँ, ऐसा ही होना चाहिए, यदि रिक्तगन्थ में कुछ सन्देह हो, तो उसे पुनः देख जाइए।
इन्द्रजीतसिंह-यद्यपि इस ग्रन्थ में मुझे किसी तरह का सन्देह नहीं है और जो कुछ उसमें लिखा है मुझे अच्छी तरह याद है, मगर शक मिटाने के लिए एक दफे उलट- पलट कर जरूर देख लूंगा।
आनन्दसिंह-मेरा भी यही इरादा है। यह काम घण्टे-दो-घण्टे के अन्दर हो भी जायेगा। अतः आप पहले रिक्तगन्थ देख जाइये, तब तक मैं इस झाड़ी को साफ किए डालता हूँ।
इतना कहकर आनन्दसिंह ने तिलिस्मी खंजर से काट कर पिण्डी के चारों तरफ के झाड़-झंखाड़ को साफ करना शुरू किया और इन्द्रजीतसिंह नहर के किनारे बैठकर तिलिस्मी किताब को उलट-पुलट कर देखने लगे। थोड़ी देर बाद इन्द्रजीतसिंह आनन्दसिं ह के पास आये और बोले-“लो, अब तुम भी इसे देखकर अपना शक मिटा लो, और तब तक तुम्हारे काम को मैं पूरा कर डालता हूँ !"
आनन्दसिंह ने अपना काम छोड़ दिया और अपने भाई के हाथ से 'रिक्तगन्थ' लेकर नहर के किनारे चले गये तथा इन्द्रजीतसिंह ने तिलिस्मी खंजर से पिण्डी के चारों तरफ की सफाई करनी शुरू कर दी। थोड़ी ही देर में जो कुछ घास-फूस, झाड़-झंखाड़ पिण्डी के चारों तरफ था, साफ हो गया और आनन्दसिंह भी तिलिस्मी किताब देखकर अपने भाई के पास चले आये और बोले, 'अब क्या आज्ञा है?"