पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/२२६

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इसके जवाब में इन्द्रजीतसिंह ने कहा, "बस, अब नहर के किनारे चलो और रिक्तगन्थ का आटा गूंधो।"

दोनों भाई नहर के किनारे आये और एक ठिकाने सायेदार जगह देखकर बैठ गये। उन्होंने नहर के किनारे वाले एक पत्थर की चट्टान को जल से अच्छी तरह धोकर साफ किया और इसके बाद रिक्तगन्थ पानी में डुबोकर उस पत्थर पर रख दिया। देखते ही देखते जो कुछ पानी रिक्तगन्थ में लगा था, सब उसी में पच गया। फिर हाथ से उस पर डाला, वह भी पच गया। इसी तरह बार-बार चुल्लू भर-भरकर उस पर पानी डालने लगे और ग्रन्थ पानी पी-पीकर मोटा होने लगा। थोड़ी देर के बाद वह मुलायम हो गया और तब आनन्दसिंह ने उसे हाथ से मल के आटे की तरह गूंधना शुरू किया। शाम होने तक उसकी सूरत ठीक गूंधे हुए आटे की तरह हो गई, मगर रंग इसका काला था। आनन्दसिंह ने इस आटे को उठा लिया और अपने भाई के साथ उस पिण्डी के पास आकर उनकी आज्ञानुसार तमाम पिण्डी पर उसका लेप कर दिया। इस के बाद दोनों भाई यहाँ से किनारे हो गये और जरूरी कामों से छुट्टी पाने के काम में लगे।



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रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी है और दोनों कुमार बाग के बीचवाले उसी दालान में सोये हुए हैं। यकायक किसी तरह की भयानक आवाज सुनकर दोनों भाइयों की नींद टूट गई और वे दोनों उठकर जंगले के नीचे चले आये, चारों तरफ देखने पर जब इनकी निगाह उस तरफ गई, जिधर वह पिण्डी थी, तो कुछ रोशनी मालूम पड़ी, दोनों भाई उसके पास गये तो देखा कि उस पिण्डी में से हाथ भर ऊँची लौ निकल रही है। यह लौ (आग की ज्योति) नीले और कुछ पीले रंग की मिली-जुली थी। साथ ही इसके यह भी मालूम हुआ कि लाह या राल की तरह वह पिण्डी गलती हुई जमीन के अन्दर धंसती चली जा रही है। उस पिण्डी में से जो धूआँ निकल रहा था उसमें धूप या लोबान की-सी खूशबू आ रही थी।

थोड़ी देर तक दोनों कुमार वहाँ खड़े रहकर यह तमाशा देखते रहे। इसके बाद इन्द्रजीतसिंह यह कहते हुए बँगले की तरफ लौटे, “ऐसा तो होना ही था, मगर उस भया- नक आवाज का पता न लगा, शायद इसी में से वह आवाज भी निकली हो।" इसके जवाब में आनन्दसिंह ने कहा, "शायद ऐसा ही हो!"

दोनों कुमार अपने ठिकाने चले आए और बची हुई रात बातचीत में काटी क्यों कि खटका हो जाने के कारण फिर उन्हें नींद न आई। सवेरा होने पर जब वे दोनों पुनः उस पिण्डी पास गये, तो देखा कि आग बुझी हुई है और पिण्डी की जगह बहुत-सी पीले रंग की राख मौजूद है। यह देख दोनों भाई वहाँ से लौट आये और नित्यकर्म से छुट्टी पा पुनः वहाँ जाकर उस पीले रंग की राख को निकाल वह जगह साफ करने लगे।