पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/२२८

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दीवार बनाई गई थी। जिस तरह रस्सियों के सहारे कनात खड़ी की जाती है, शक्ल-सूरत में वह दीवार वैसी ही मालूम पड़ती थी अर्थात् एक-एक दो-दो कहीं-कहीं तीन-तीन हाथ की दूरी पर दीवार में लोहे की जंजीरें लगी हुई थीं, जिनका एक सिरा तो दीवार के अन्दर घुस गया था और दूसरा सिरा जमीन के अन्दर था। चारों तरफ की दीवार में से किसी भी जगह हाथ लगाने से आदमी के बदन में बिजली का असर हो जाता था और वह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ता था। यही सबब था कि बेचारी सरयू उस दीवार के पार हो जाने के लिए कोई उद्योग न कर सकी, बल्कि इस चेष्टा में उसे कई दफे तकलीफ भी उठानी पड़ी।

इस बाग के उत्तर की तरफ की दीवार के साथ सटा हुआ एक छोटा सा मकान था। इस बाग में खड़े होकर देखने वालों को यह मकान ही मालूम पड़ता था, मगर हम यह नहीं कह सकते कि दूसरी तरफ से उसकी क्या सूरत थी। इसकी सात खिड़कियाँ इस बाग की तरफ थीं जिनसे मालूम होता था कि यह इस मकान का एक खुलासा कमरा है। इस बाग में आने पर सबके पहले जिस चीज पर कुंअर इन्द्रजीतसिंह की निगाह पड़ी वह यही कमरा था और उसकी तीन खिड़कियों में से इन्दिरा, इन्द्रदेव और राजा गोपालसिंह इस बाग की तरफ झाँककर किसी को देख रहे थे, और इसके बाद बाद जिस पर उनकी निगाह पड़ी, वह जमाने के हाथों से सताई हुई बेचारी सरयू थी। मगर उसे दोनों कुमार पहचानते न थे।

जिस तरह कुंअर इन्द्रजीतसिंह और उनके बताने से आनन्दसिंह ने राजा गोपाल- सिंह, इन्द्रदेव और इन्दिरा को देखा, उसी तरह उन तीनों ने भी दोनों कुमारों को देखा और दूर ही से साहब-सलामत की।

इन्दिरा ने हाथ जोड़कर और अपने पिता की तरफ बताकर कुमारों से कहा, "आप ही के चरणों की बदौलत मुझे अपने पिता के दर्शन हुए।"



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अब हम अपने पाठकों को फिर उसी सफर में ले चलते हैं जिसमें चुनार जाने वाले राजा वीरेन्द्रसिंह का लश्कर पड़ा हुआ हैं। पाठकों को याद होगा कि कम्बख्त मनो- रमा ने तिलिस्मी खंजर से किशोरी, कामिनी और कमला का सिर काट डाला और खुशी भरी आवाज में कुछ कह रही थी कि पीछे की तरफ से आवाज आई, "नहीं-नहीं, ऐसः न हुआ है, न होगा!"

आवाज देने वाला भैरोंसिंह था जिसे मनोरमा के खोज निकालने का काम सुपुर्द किया गया था। वह मनोरमा की खोज में चक्कर लगाता और टोह लेता हुआ उसी जगह जा पहुंचा था, मगर उसे इस बात का बड़ा ही अफसोस था कि उन तीनों का सिर कट जाने के बाद वह खेमे के अन्दर पहुंचा।