पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/२४०

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जान बची।

इस जगह लक्ष्मीदेवी ने सरयू और इन्दिरा का किस्सा पूरा-पूरा बयान किया जिसे सुनकर वे तीनों बहुत प्रसन्न हुईं और कमला ने कहा, "विश्वासघातियों और दुष्टों के लिए उस समय जमानिया वैकुण्ठ हो रहा था!"

लक्ष्मीदेवी--तभी तो मुझे ऐसे-ऐसे दुःख भोगने पड़े जिनसे अभी तक छुटकारा नहीं मिला, मगर मैं नहीं कह सकती कि अब मेरी क्या गति होगी और मुझे क्या करना होगा।

किशोरी--क्या जमानिया में इन्द्रदेव से राजा गोपालसिंह ने तुम्हारे विषय में कोई बातचीत नहीं की?

लक्ष्मीदेवी--कुछ भी नहीं, सिर्फ इतना कहा कि तुम उन तीनों बहिनों को कृष्ण जिन्न की आज्ञानुसार वहाँ पहुँचा दो जहाँ किशोरी, कामिनी और कमला हैं, वहाँ स्वयं कृष्ण जिन्न जाएंगे, उसी समय जो कुछ वे कहेंगे सो करना। शायद कृष्ण जिन्न उन सभी को यहाँ ले आवें।

कामिनी--(हाथ मलकर) बस ! लक्ष्मीदेवी--बस, और कुछ भी नहीं पूछा और न इन्द्रदेवजी ही ने कुछ कहा, क्योंकि उन्हें भी इस बात का रंज है।

किशोरी--रंज तो होना ही चाहिए जो भी सुनेगा। उसी को इसका रंज होगा। वे तो बेचारे तुम्हारे पिता ही के बराबर ठहरे, क्यों न रंज करेंगे ! (कमलिनी से) तुम तो अपने जीजाजी के मिजाज की बड़ी तारीफ करती थीं!

कमलिनी-–बेशक वे तारीफ के ही लायक हैं, मगर इस मामले में तो मैं आप हैरान हो रही हूँ कि उन्होंने ऐसा क्यों किया ! उनके सामने ही दोनों कुमारों ने बड़े शौक से तुम लोगों का हाल इन्द्रदेव से पूछा और सभी को जमानिया में बुला लेने के लिए कहा, मगर उस पर भी राजा साहब ने हमारी दुखिया बहिन को याद न किया, आशा है कि कल तक कृष्ण जिन्न भी यहाँ आ जायेंगे, देखें, वह क्या करते हैं!

लक्ष्मीदेवी--करेंगे क्या, अगर वह मुझे जमानिया चलने के लिए कहेंगे भी तो मैं इस बेइज्जती के साथ जाने वाली नहीं हूँ। जब मेरा मालिक मुझे पूछता ही नहीं तो मैं कौन सा मुंह लेकर उसके पास जाऊँ और किस सुख के लिए या किस आशा पर इस शरीर को रखू!

कमला--नहीं-नहीं, तुम्हें इतना रंज नहीं करना चाहिए...

कामिनी--(बात काटकर)रंज क्यों न करना चाहिए ! भला इससे बढ़कर भी कोई रंज दुनिया में है ! जिसके सबब से और जिसके खयाल से इस बेचारी ने इतने दुःख भोगे और ऐसी अवस्था में रही, वही जब एक बात न पूछे तो कहो रंज हो कि न हो ? और नहीं तो इस बात का खयाल ही करते कि इसी की बहिन या उनकी साली की बदौलत उनकी जान बची, नहीं तो दुनिया से उनका नाम-निशान भी उठ जाता।

लाड़िली--बहिन, ताज्जुब तो यह है कि इनकी खबर न ली तो न सही अपनी

च० स०-4-15