पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/२४१

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उस अनोखी मायारानी की सूरत तो आकर देख जाते जिसने उनके साथ

कामिनी—(जल्दी से)हाँ, और क्या ? उसे भी देखने न.आए ! उन्हें तो चाहिए था कि रोहतासगढ़ पहुँचकर उसकी बोटी-बोटी अलग कर देते!

इस तरह से ये सब बड़ी देर तक आपस में बातें करती रहीं। लक्ष्मीदेवी की अवस्था पर सभी को रंज, अफसोस और ताज्जुब था। जब रात ज्यादा बीत गई तो सभी ने चारपाई की शरण ली। दूसरे दिन उन्हें कृष्ण जिन्न के आने की खबर मिली।



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किशोरी, कामिनी, कमलिनी, लक्ष्मीदेवी, कमला और लाड़िली सभी को कृष्ण जिन्न के आने का इन्तजार था। सभी के दिल में तरह-तरह की बातें पैदा हो रही थीं और सभी को इस बात की आशा लग रही थी कि कृष्ण जिन्न के आने पर इस बात का पता लग जायेगा कि कृष्ण जिन्न कौन हैं और राजा गोपालसिंह ने लक्ष्मीदेवी की सुध क्यों भुला दी।

आखिर दूसरे दिन कृष्ण जिन्न भी वहां आ पहुँचा। यद्यपि वह एक ऐसा आदमी था, जिसकी किसी को भी खबर न थी। कोई भी नहीं कह सकता था कि वह कौन और कहाँ का रहने वाला है, न कोई उसकी जात बता सकता था और न कोई उसकी ताकत और सामर्थ्य के विषय में ही कुछ बाद-विवाद कर सकता था, तथापि उसकी हमदर्दी और कार्रवाई से सभी खुश थे और इसलिए कि राजा वीरेन्द्रसिंह उसे मानते थे। सभी उसकी कदर करते थे। गुप्त स्थान में पहुँच वह सभी को चौकन्ना कर चुका था। इस और न ऐसा करने का उन्हें हुक्म था। अस्तु कृष्ण जिन्न के आने की खबर पाकर सब खुश हुई और बीच वाले दोमंजिले मकान में, जिनमें सबके पहले आकर उसने इन्द्रदेव से मुलाकात की थी, चलने के लिए तैयार हो गई, मगर उसी समय भैरोंसिंह ने बँगले पर आकर लक्ष्मोदेवी इत्यादि से कहा कि कृष्ण जिन्न स्वयं वहीं चले आ रहे हैं।

थोड़ी देर बाद कृष्ण जिन्न बँगले पर आ पहुँचा। लक्ष्मीदेवी, कमलिनी, लाडिली, किशोरी, कामिनी और कमला ने आगे बढ़कर उसका इस्तकबाल (अगवानी) किया और इज्जत के साथ लाकर एक ऊंची गद्दी के ऊपर बैठाया। उसकी आज्ञानुसार इन्द्रदेव और भैरोंसिंह गद्दी के नीचे दाहिनी तरफ बैठे और लक्ष्मीदेवी इत्यादि को सामने बैठने के लिए कृष्ण जिन्न ने आज्ञा दी और सभी ने खुशी से उसकी आज्ञा स्वीकार की। कृष्ण जिन्न ने सभी का कुशल-मंगल पूछा और फिर यों बातचीत होने लगी--

किशोरी--आपकी बदौलत हम लोगों की जान बच गई, मगर उन लौंडियों के मारे जाने का रंज है।