पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/२४२

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कृष्ण जिन्न--यह सब ईश्वर की माया है, वह जो चाहता है, करता है। यद्यपि मनोरमा ने कई शैतानों को साथ लेकर तुम लोगों का पीछा किया था, मगर उसके गिरफ्तार हो जाने से ही उन सभी का खौफ जाता रहा। अब जो मैं खयाल करके देखता हूँ तो तुम लोगों का दुश्मन कोई भी दिखाई नहीं देता। क्योंकि जिन दुष्टों की बदौलत लोग दुश्मन हो रहे थे या यों कहो कि जो लोग उनके मुखिया थे, वे सब गिरफ्तार हो गए। यहाँ तक कि उन लोगों को कैद से छुड़ाने वाला भी कोई न रहा।

कमलिनी--ठीक है, तो अब हम लोगों को छिप कर यहां रहने की क्या जरूरत है?

कृष्ण जिन्न-–(हँस कर) तुम्हें तो तब भी छिप कर रहने की जरूरत नहीं पड़ी जब चारों तरफ दुश्मनों का जोर बँधा हुआ था, आज की कौन कहे ? मगर हाँ (हाथ का इशारा करके) इन बेचारियों को अब यहां रहने की कोई जरूरत नहीं और अब इसी- लिए मैं यहाँ आया हूँ कि तुम लोगों को जमानिया ले चलूं, वहाँ से फिर जिसको जिधर जाना होगा, चला जायगा।

लक्ष्मीदेवी तो आप हम लोगों को चुनारगढ़ क्यों नहीं ले चलते या वहाँ जाने की आज्ञा क्यों नहीं देते?

कृष्ण जिन्न-नहीं-नहीं, तुम लोगों को पहले जमानिया चलना चाहिए। यह केवल मेरी आज्ञा ही नहीं, बल्कि मैं समझता हूँ कि तुम लोगों की भी यही इच्छा होगी। (लक्ष्मीदेवी से) तुम तो जमानिया की रानी ही ठहरी, तुम्हारी रिआया खुशी मनाने के लिए उस दिन का इन्तजार कर रही है जिस दिन तुम्हारी सवारी शहर के अन्दर पहुँचेगी, और कमलिनी तथा लाड़िली तुम्हारी बहिन ही ठहरी...

लक्ष्मीदेवी--(बात काट कर) बस बस, मैं बाज आई जमानिया की रानी बनने से ! वहाँ जाने की मुझे कोई जरूरत नहीं और मेरी दोनों वहिनें भी जहां मैं रहूँगी, वहीं मेरे साथ रहेंगी।

कृष्ण जिन्न–-क्यों क्यों, ऐसा क्यों?

लक्ष्मीदेवी–-मैं इसलिए विशेष बात कहना नहीं चाहती कि आपने यद्यपि हम लोगों की बड़ी सहायता की है और हम लोग जन्म-भर आपकी ताबेदारी करके भी उसका बदला नहीं चुका सकतीं तथापि आपका परिचय न पाने के कारण...

कृष्ण जिन्न-ठीक है ठीक है, अपरिचित पुरुष से दिल खोल कर बातें करना कुलवती स्त्रियों का धर्म नहीं है, मगर मैं यद्यपि इस समय अपना परिचय नहीं दे सकता तथापि यह कहे देता हूँ कि नाते में राजा गोपालसिंह का छोटा भाई हूँ। इसलिए तुम्हें भावज मानकर बहुत-कुछ कहने और सुनने का हक रखता हूँ। तुम निश्चय रक्खो कि मेरे विषय में राजा गोपालसिंह तुम्हें कभी उलाहना न देंगे, चाहे तुम मुझसे किसी तरह पर बातचीत क्यों न करो ! (कुछ सोच कर) मगर मैं समझ रहा हूँ कि तुम जमानिया जाने से क्यों इनकार करती हो। शायद तुम्हें इस बात का रंज है कि यकायक तुम्हारे जीते रहने की खबर पाकर भी गोपालसिंह तुम्हें देखने के लिए न आए"