पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/२४३

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कमलिनी—देखने के लिए आना तो दूर रहा, अपने हाथ से एक पुर्जा लिख कर यह भी न पूछा कि तेरा मिजाज कैसा है!

लाड़िली--आने-जाने वाले आदमी तक से भी हाल न पूछा!

लक्ष्मीदेवी--(धीरे से) एक कुत्ते की भी इतनी बेकदरी नहीं की जाती!

कमलिनी--ऐसी हालत में रंज हुआ ही चाहे, जब आप यह कहते हैं कि राजा गोपाल सिंह के छोटे भाई हैं, और मैं समझती हूँ कि आप झूठ भी नहीं कहते होंगे, तभी हम लोगों को इतना कहने का हौसला भी होता है। आप ही कहिए कि राजा साहब को क्या यही उचित था?

कृष्ण जिन्न--मगर तुम इस बात का क्या सबूत रखती हो कि राजा साहब ने इनकी बेकदरी की ? औरतों की भी विचित्र बुद्धि होती है ! असल बात तो जानती नहीं और उलाहना देने पर तैयार हो जाती हैं।

कमलिनी--सबूत अब इससे बढ़कर क्या होगा जो मैं कह चुकी हूँ ? अगर एक दिन के लिए चुनारगढ़ आ जाते तो क्या पैर की मेंहदी छूट जाती!

कृष्ण जिन्न-अपने बड़े लोगों के सामने अपनी स्त्री को देखने के लिए आना क्या उचित होता? मगर अफसोस, तुम लोगों को तो इस बात की खबर ही नहीं कि राजा गोपालसिंह महाराज वीरेन्द्रसिंह के भतीजे होते हैं और इसी सबब से लक्ष्मीदेवी को अपने घर में आ गई जानकर उन्होंने किसी तरह की जाहिरदारी न की।

सब--(ताज्जुब से) क्या महाराज उनके चाचा होते हैं?

कृष्ण जिन्न--हाँ, यह बात पहले केवल हमी दोनों आदमियों को मालूम थी और तिलिस्म तोड़ने के समय दोनों कुमारों को मालूम हुई या आज मेरी जुबानी तुम लोगों ने सुनी। खुद महाराज वीरेन्द्रसिंह को भी अभी तक यह बात मालूम नहीं है।

लक्ष्मीदेवी-अच्छा अच्छा, जब नातेदारी इतनी छिपी हुई थी तो

कमलिनी--(लक्ष्मीदेवी को रोककर) बहिन, तुम रहने दो, मैं इनकी बातों का जवाब दे लूंगी ! (कृष्ण जिन्न से) तो क्या गुप्त रीति से वह यहाँ एक चिट्ठी भी नहीं भेज सकते थे?

कृष्ण जिन्न--चिट्ठी भेजना तो दूर रहा, गुप्त रीति से खुद कई दफे आकर वे इनको देख भी गये हैं।

लाड़िली--अगर ऐसा ही होता तो रंज काहे का था!

कमलिनी--इस बात को तो वह कदापि साबित नहीं कर सकते!

कृष्ण जिन्न--यह बात बहुत सहज में साबित हो जायगी और तुम लोग सहज ही में मान भी जाओगी, मगर जब उनका और तुम्हारा सामना होगा तब।

कमलिनी--तो आपकी राय है कि बिना सन्तोष हुए और बिना बुलाये बेइज्जती के साथ हमारी बहिन जमानिया चली जाय?

कृष्ण जिन्न--बिना बुलाये कैसे ? आखिर मैं यहाँ किस लिए आया हूँ। (जेब से एक चिट्ठी निकाल कर और लक्ष्मीदेवी के हाथ में देकर) देखो, उनके हाथ की लिखी चिट्ठी पढ़ो।