नहीं। इसके सबब से बड़े बड़े मजबूत कलेजे हिल जाते हैं और पाप और पुण्य के विचार को तो यह इसी तरह से उड़ा देता है जैसे गन्धक का धुआँ कनेर पुष्प के लाल रंग को। यद्यपि दारोगा और बलभद्रसिंह में दोस्ती थी, परन्तु हेलासिंह के दिखाए हुए सब्जबाग ने दारोगा को ईश्वर और धर्म की तरफ कुछ भी विचार न करने दिया और वह बड़ी दृढ़ता के साथ विश्वासघात करने के लिए तैयार हो गया।
बलभद्रसिंह अपनी लड़की तथा कई नौकर और सिपाहियों को लेकर जमानिया में पहुँचे और एक किराए के बाग में डेरा डाला जो कि दारोगा ने उनके लिए पहले ही से ठीक कर रखा था। जब हर तरह का सामान ठीक हो गया तो उन्होंने दोस्ती के ढंग पर दारोगा को अपने पास बुलाया और उन चीजों को दिखाया जो शादी के लिए बन्दो- बस्त कर अपने साथ ले आये थे, उन कपड़ों और गहनों को भी दिखाया जो दामाद को देने के सिए लाए थे, फेहरिस्त के सहित वे चीजें उसके सामने रखीं जो दहेज में देने के लिए थीं, और सबके अन्त में वे कपड़े भी दिखाए जो शादी के समय अपनी लड़की लक्ष्मीदेवी को पहनाने के लिए तैयार कराकर लाए थे। दारोगा ने दोस्ताना ढंग पर एक- एक करके सब चीजों को देखा और तारीफ करता गया, मगर सबसे ज्यादा देर तक जिन चीजों पर उसकी निगाह ठहरी वह शादी के समय पहनाये जाने वाले लक्ष्मीदेवी के कपड़े थे। दारोगा ने उन कपड़ों को उससे भी ज्यादा बारीक निगाह से देखा जिस निगाह से कि रेहन रखने वाला कोई चालाक बनिया उन्हें देखता या जांच करता।
दारोगा अकेला बलभद्रसिंह के पास नहीं आया था, बल्कि अपने नौकर तथा सिपाहियों के साथ जिनको वह दरवाजे पर ही छोड़ आया था और भी दो आदमियों को लाया था जिन्हें बलभद्रसिंह नहीं पहचानते थे और दारोगा ने जिन्हें अपना दोस्त कहकर परिचय दिया था। इस समय इन दोनों ने भी उन कपड़ों को अच्छी तरह देखा जिनके देखने में दारोगा ने अपने समय का बहुत हिस्सा नष्ट किया था।
थोड़ी देर तक गपशप और तारीफ करने के बाद दारोगा उठकर अपने घर चला गया। यहाँ उसने सब हाल हेलासिंह से कहा और यह भी कहा कि मैं दो चालाक दजियों को अपने साथ लिए गया था जिन्होंने वे कपड़े बहुत अच्छी तरह देख-भाल लिए हैं जो लक्ष्मीदेवी को विवाह के समय पहनाए जाने वाले हैं और उन दर्जियों को ठीक उसी तरह के कपड़े तैयार करने के लिए आज्ञा दे दी गयी है, इत्यादि।
जिस दिन शादी होने वाली थी, केवल रात ही अँधेरी न थी, बल्कि बादल भी चारों तरफ से इतने घिर आये थे कि हाथ को हाथ भी नहीं दिखाई देता था। ब्याह का काम उसी खास बाग में ठीक किया गया था जिसमें मायारानी के रहने का हाल हम कई मर्तबे लिख चुके हैं। इस समय इस बाग का बहुत बड़ा हिस्सा दारोगा ने शादी का सामान वगैरह रखने के लिए अपने कब्जे में कर लिया था जिसमें कई दालान, कोठरियाँ, कमरे और तहखाने भी थे और साथ-साथ उसने हेलासिंह की लड़की मुन्दर को भी लौंडियों के से कपड़े पहना के अन्दर एक तहखाने में छिपा रखा था।
कन्यादान का समय तीन पहर रात बीते पण्डितों ने निश्चय किया था और जो पण्डित विवाह कराने वालों का मुखिया था, उसे दारोगा ने पहले ही मिला लिया था।