भूतनाथ-नहीं मेरी भूल कदापि नहीं है, यद्यपि आप दारोगा के गुरुभाई हैं, मगर इस बात को भी अच्छी तरह जानता हूँ कि आपके और उसके मिजाज में उलटे-सीधे का फर्क है, और मैं जिस काम में आपसे मदद लिया चाहता हूँ, वह नेक और धर्म का काम है।
इन्द्रदेव--(कुछ सोचकर) अगर तुम यह समझ कर कि मैं तुम्हारी मदद नहीं करूंगा, अपना मतलब कह सकते हो तो कहो, जैसा होगा मैं जवाब दूंगा।
भूतनाथ--यह तो मैं समझ ही नहीं सकता कि आपसे किसी तरह की मदद नहीं मिलेगी, मदद मिलेगी और जरूर मिलेगी क्योंकि आपसे और बलभद्रसिंह से दोस्ती थी और उस दोस्ती का बदला आप उस तरह नहीं अदा कर सकते जिस तरह दारोगा साहब ने किया था।
इस समय उस कमरे में वे तीनों आदमी भी मौजूद थे जो भूतनाथ को अपने साथ यहां तक लाये थे, इन्द्रदेव ने उन तीनों को बिदा करने के बाद कहा-
इन्द्रदेव--क्या तुम उस बलभद्रसिंह के बारे में मुझसे मदद लिया चाहते हो जिसे मरे आज कई वर्ष बीत चुके हैं ?
भूतनाथ--जी हाँ, उसी बलभद्रसिंह के बारे में, जिसकी लड़की तारा बनकर कमलिनी के साथ रहने वाली लक्ष्मीदेवी है और जिसे आप चाहे मरा हुआ समझते हैं, मगर मैं मरा हुआ नहीं समझता।
इन्द्रदेव--(आश्चर्य से) क्या तारा ने अपना भेद प्रकट कर दिया ! और क्या तुम्हें कोई ऐसा सबूत मिला है जिससे समझा जाए कि बलभद्रसिंह अभी तक जीता है?
भूतनाथ--जी, तारा का भेद यकायक प्रकट हो गया है जिसे मैं भी नहीं जानता था कि वह लक्ष्मीदेवी है, और बलभद्रसिंह के जीते रहने का सबूत भी मुझे मिल गया, मगर आपने तारा का नाम इस ढंग से लिया, जिससे मालूम होता है कि आप तारा का असल भेद पहले ही से जानते थे।
इन्द्रदेव--नहीं-नहीं, मैं भला क्योंकर जानता था कि तारा लक्ष्मीदेवी है। यह तो आज तुम्हारे ही मुंह से मालूम हुआ है। अच्छा तुम पहले यह तो कह जाओ कि तारा का भेद क्योंकर प्रकट हुआ, तुम किस मुसीबत में पड़े हो, और इस बात का क्या सबूत तुम्हारे पास है कि बलभद्रसिंह अभी तक जीते हैं ? क्या बलभद्रसिंह जान-बूझकर कहीं छिपे हुए हैं या किसी की कैद में हैं?
भूतनाथ--नहीं-नहीं, बलभद्रसिंह जान-बूझकर छिपे हुए नहीं हैं बल्कि कहीं कैद हैं। मैं उन्हें छुड़ाने की फिक्र में लगा हूँ और इसी काम में आपसे मदद लिया चाहता हूँ क्योंकि अगर बलभद्रसिंह का पता लग गया तो आपको दो जाने बचाने का पुण्य मिलेगा।
इन्द्रदेव--दूसरा कौन?
भुननाथ--दूसरा मैं, क्योंकि अगर वलभद्रसिंह का पता न लगेगा तो निश्चय है कि मैं भी मारा जाऊँगा।
इन्द्रदेव--अच्छा, तुम पहले अपना पूरा हाल कह जाओ!
इतना सुनकर भूतनाथ ने अपना हाल उस जगह से, जब भगवनिया के सामने