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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/४१

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नकली बलभद्रसिंह से उससे मुलाकात हुई थी कहना शुरू किया और इन्द्रदेव बड़े गौर से उसे सुनते रहे। भूतनाथ ने कैदियों की हालत में अपना रोहतासगढ़ पहुँचना, कृष्णजिन्न से मुलाकात होना, मायारानी और दारोगा इत्यादि की गिरफ्तारी, राजा वीरेन्द्रसिंह के आगे मुकदमे की पेशी, कृष्ण जिन्न के पेश किये हुए अनूठे कलमदान की कैफियत, असली बलभद्रसिंह को खोज निकालने के लिए अपनी रिहाई और राजा गोपालसिंह के पास से बिना कुछ मदद पाये बैरंग लौट आने का हाल सब पूरा-पूरा इन्द्रदेव से कह सुनाया। इन्द्रदेव थोड़ी देर तक चुपचाप कुछ सोचते रहे। भूतनाथ ने देखा कि उनके चेहरे का रंग थोड़ी-थोड़ी देर में बदलता है और कभी लाल कभी सफेद और कभी जर्द होकर उनके दिल की अवस्था का थोड़ा-बहुत हाल प्रकट करता है।

इन्द्रदेव--(कुछ देर बाद) मगर तुम्हारे इस किस्से में कोई ऐसा सबूत नहीं मिला जिससे बलभद्रसिंह का अभी तक जीते रहना साबित होता हो।

भूतनाथ-क्या मैंने आपसे अभी नहीं कहा कि असली बलभद्रसिंह के जीते रहने का मुझे शक हुआ और कृष्ण जिन्न ने मेरे उस शक को यह कह कर विश्वास के साथ बदल दिया कि 'बेशक असली बलभद्रसिंह अभी तक कहीं कैद है और तू जिस तरह हो सके उसका पता लगा।"

इन्द्रदेव--हाँ, यह तो तुमने कहा, मगर मैं यह तो नहीं जानता कि कृष्ण जिन्न कौन है और उसकी बातों पर कहाँ तक विश्वास करना चाहिए।

भूतनाथ--अफसोस, आपने कृष्ण जिन्न की कार्रवाई पर अच्छी तरह ध्यान नहीं दिया जो मैं अभी आपसे कह चुका हूँ। यद्यपि मैं स्वयं उसे नहीं जानता परन्तु जिस समय कृष्णजिन्न ने वह अनूठा कलमदान पेश किया, जिसे देखते ही नकली- बलभद्र- सिंह की आधी जान निकल गई, जिस पर निगाह पड़ते ही लक्ष्मीदेवी बेहोश हो गई, जिसे एक झलक ही में मैं पहचान गया, जिस पर मीनाकारी को तीन तस्वीरें बनी हुई थीं, और जिस पर विचली तस्वीर के नीचे मीनाकारी के मोटे खूबसूरत अक्षरों में 'इन्दिरा' लिखा हुआ था, उसी समय मैं समझ गया कि यह साधारण मनुष्य नहीं है।

इन्द्रदेव--(चौंक कर) क्या कहा ! क्या लिखा हुआ था—'इन्दिरा!'

और यह कहने के साथ ही इन्द्रदेव के चेहरे का रंग उड़ गया तथा आश्चर्य ने उस पर अपना दखल जमा लिया।

भूतनाथ--हाँ-हां, 'इन्दिरा'-बेशक यही लिखा हुआ था।

अव इन्द्रदेव अपने को किसी तरह सम्हाल न सका। वह घबड़ा कर उठ खड़ा हुआ और धीरे-धीरे निम्नलिखित बातें कहता हुआ इधर-उधर घूमने लगा-

"ओफ,मुझे धोखा हुआ ! वाह रे दारोगा, तूने इन्द्रदेव ही पर अपना हाथ साफ किया, जिसने तेरे सैकड़ों कसूर माफ किये और फिर भी तेरे रोने-पीटने और बड़ी-बड़ी कसमें खाने पर विश्वास करके तुझे राजा वीरेन्द्रसिंह की कैद से छुड़ाया ! वाह रे जैपाल तुझे तो इस तरह तड़पा-तड़पाकर मारूँगा कि गन्दगी पर बैठने वाली मक्खियों को भी तेरे हाल पर रहम आबेगा ! लक्ष्मीदेवी का बाप बनकर चला था मायारानी और दारोगा की मदद करने ! वाह रे कृष्ण जिन्न, ईश्वर तेरा भला करे ! मगर इसमें भी कोई शक