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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/४२

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नहीं कि तुझको ये बातें हाल ही में मालूम हुई हैं। आह, मैंने वास्तव में धोखा खाया। लक्ष्मीदेवी की बहुत ही प्यारी इन्दिरा ! अच्छा-अच्छा, ठहर जा, देख तो सही मैं क्या करता हूँ। भूतनाथ ने यद्यपि बहुत से बुरे काम किये हैं परन्तु अब वह उनका प्रायश्चित्त भी बड़ी खूबी के साथ कर रहा है। (भूतनाथ की तरफ देखकर)अच्छा-अच्छा, मैं तुम्हारा साथ दूंगा, मगर अभी नहीं, जब तक मैं उस कलमदान को अपनी आँखों से न देख लूंगा तब तक मेरा जी ठिकाने न होगा।"

भूतनाथ--(जो बड़े गौर से इन्द्रदेव का बड़बड़ाना सुन रहा था) हाँ-हाँ, आप उसे देख सकते हैं, मेरे साथ रोहतासगढ़ चलिये।

इन्द्रदेव--तुम्हारे साथ चलने की कोई आवश्यकता नहीं, तुम इसी जगह रहो, मैं अकेला ही जाऊँगा और बहुत जल्द ही लौट आऊँगा।

इतना कहकर इन्द्रदेव ने ताली बजाई और आवाज के साथ ही अपने दो आदमियों को कमरे के अन्दर आते देखा। इन्द्रदेव अपने आदमियों से यह कह कर कि " भूतनाथ को खातिरदारी के साथ यहाँ रखो, जब तक कि मैं एक छोटे सफर से न लौट आऊँ" कमरे के बाहर हो गये और तब दूसरे कमरे में जिसकी ताली वे अपने पास ही रखा करते थे, ताला खोल कर चले गये। इस कमरे में खूटियों के सहारे तरह-तरह के कपड़े, ऐयारी के बहुत से बटुए, रंग-बिरंग के नकाब, एक से एक बढ़कर नायाब और बेशकीमत ह. और कमरबन्द वगैरह लटक रहे थे और एक तरफ लोहे तथा लकड़ी के छोटे-बड़े कई सन्दूक भी रखे हुए थे। इन्द्रदेव ने अपने मतलब का एक जोड़ा (बेशकीमत पोशाक) खूटी से उतार कर पहन लिया और जो कपड़े पहले पहने हुए थे, उतारकर एक तरफ रख दिये। सुर्ख रंग की नकाब उतार कर चेहरे पर लगाई, ऐयारी का बटुआ बगल में लटकाने के बाद बेशकीमती हों से अपने को दुरुस्त किया, और इसके बाद लोहे के एक सन्दूक में से कुछ निकाल कर कमर में रख कमरे के बाहर निकल आये, कमरे का ताला बन्द किया और तब बिना भूतनाथ से मुलाकात किये ही वहाँ से रवाना हो गये।



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रोहतासगढ़ में महल के अन्दर एक खूबसूरत सजे हुए कमरे राजा वीरेन्द्र- सिंह ऊँची गद्दी के ऊपर बैठे हुए हैं, बगल में तेजसिंह और देवीसिंह बैठे हैं, तथा सामने की तरफ किशोरी, कामिनी, लक्ष्मीदेवी, कमलिनी, लाड़िली और कमला अदब के साथ सिर झुकाये बैठी हैं। आज राजा वीरेन्द्रसिंह अपने दोनों ऐयारों के सहित यहाँ वैठकर उन सभी की बीती हुई दुःखभरी कहानी बड़े गौर से कुछ सुन चुके हैं और बाकी सुन रहे हैं। दरवाजे पर भैरोंसिंह और तारासिंह खड़े पहरा दे रहे हैं। किसी लौंडी तक को भी वहाँ आने की आज्ञा नहीं है। किशोरी, कामिनी, कमलिनी, कमला और लक्ष्मीदेवी का हाल सुन चुके हैं, इस समय लाड़िली अपना किस्सा कह रही है।