लाड़िली अपना किस्सा कहते-कहते बोली-
लाड़िली--जब मायारानी की आज्ञानुसार धनपत और मैं नानक और किशोरी के साथ दुश्मनी करने के लिए जमानिया से निकली तो शहर के बाहर होकर हम दोनों अलग-अलग हो गईं। इत्तिफाक की बात है कि धनपत सूरत बदल कर इसी किले में आ रही और मैं भी घूमत-फिरती, भेष बदले हुए किशोरी का यहाँ होना सुनकर इसी किले में आ पहुँची और हम दोनों ही ने रानी साहिबा की नौकरी कर ली। उस समय मेरा नाम लाली था। यद्यपि इस मकान में मेरी और धनपत की मुलाकात हुई और बहुत दिनों तक हम दोनों आदमी एक ही जगह रहे भी, मगर न तो मैंने धनपत को पहचाना जो कुन्दन के नाम से यहाँ रहती थी और न धनपत ही ने मुझे पहचाना। (ऊँची साँस लेकर) अफसोस, मुझे उस समय का हाल कहते शर्म मालूम होती है, क्योंकि मैं बेचारी निर्दोष किशोरी के साथ दुश्मनी करने के लिए तैयार थी। यद्यपि मुझे किशोरी की अवस्था पर रहम आता था मगर मैं लाचार थी, क्योंकि मायारानी के कब्जे में थी और इस बात को खूब समझती थी कि यदि मैं मायारानी का हुक्म न मानूंगी तो निःसन्देह वह मेरा सिर काट लेगी।
इतना कहकर लाडिली रोने लगी।
वीरेन्द्रसिंह--(दिलासा देते हुए) बेटी, अफसोस करने को कोई जगह नहीं है। यह तो बनी-बनाई बात है कि यदि कोई धर्मात्मा या नेक आदमी शैतान के कब्जे में पड़ा हुआ होता है तो उसे झक मार कर शैतान की बात माननी पड़ती है। मैं खूब समझता हूँ और विश्वास दिला चुका हूँ कि तू नेक है तेरा कोई दोष नहीं, जो कुछ किया कम्बख्त दारोगा तथा मायारानी ने किया, अस्तु तू कुछ चिन्ता मत कर और अपना हाल कह।
आँचल से आँसू पोंछ कर लाड़िली ने फिर कहना शुरू किया-
लाडिली--मैं चाहती थी कि किशोरी को अपने कब्जे में कर लूं और तिलिस्मी तहखाने की राह से बाहर होकर इसे मायारानी के पास ले जाऊँ तथा धनपत का भी इरादा यही था। इस सबब से कि यहाँ का तहखाना एक छोटा-सा तिलिस्म है और जमानिया के तिलिस्म से सम्बन्ध रखता है, यहाँ के तहखाने का बहुत-कुछ हाल मायारानी को मालूम है और उसने मुझे और धनपत को बता दिया था। अस्तु, किशोरी को लेकर यहाँ के तहखाने की राह से निकल जाना मेरे या धनपत के लिए कोई बड़ी बात न थी। इसके अतिरिक्त यहाँ एक बुढ़िया रहती थी जो रिश्ते में राजा दिग्विजयसिंह की बूआ होती थी। वह बड़ी ही सीधी नेक तथा धर्मात्मा थी और बड़ी सीधी चाल बल्कि फकीरी ढंग पर रहा करती थी। मैंने सुना है कि वह मर गई, अगर जीती होती तो आपसे मुला- कात करा देती। खैर, मुझे यह बात मालूम हो चुकी थी कि वह बुढ़िया यहाँ के तह- खाने का हाल बहुत ज्यादा जानती है अतएव मैंने उससे दोस्ती पैदा कर ली और तब मुझे मालूम हुआ कि वह किशोरी पर दया करती है और चाहती है कि यह किसी तरह यहाँ से निकलकर राजा वीरेन्द्रसिंह के पास पहुँच जाय। मैंने उसके दिल में विश्वास दिला दिया कि किशोरी को यहाँ से निकाल कर चुनार पहुँचा देने के विषय में जी-जान से कोशिश करूँगी और इसीलिए उस बुढ़िया ने भी यहाँ के तहखाने का बहुत-सा हाल