पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/४७

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वीरेन्द्रसिंह--(मुस्कुराते हुए) कहिये आप कुशल से तो हैं ! राह में कुछ तकलीफ तो नहीं हुई?

इन्द्रदेव--(हाथ जोड़कर) आपकी कृपा से मैं बहुत अच्छा हूँ, सफर में हजार तकलीफ उठाकर आने वाला भी आपका दर्शन पाते ही कृतार्थ हो जाता है, फिर मेरी क्या बात है जिसे इस सफर पर ध्यान देने की छुट्टी अपने खयालों की उलझन की बदौलत बिल्कुल ही न मिली।

वीरेन्द्रसिंह--तो मालूम होता है कि आप किसी भारी काम के लिए यहाँ आये हैं। (हँसकर) क्या अबकी फिर दारोगा साहब को छुड़ाकर ले जाने का इरादा है?

इन्द्रदेव--(शर्मिन्दगी के साथ हँसकर) जी नहीं, अब मैं उस कम्बख्त की कुछ भी मदद नहीं कर सकता, जिसे गुरुभाई समझकर आपके कैदखाने से छुड़ाया था और आइन्दा नेकनीयती के साथ जिन्दगी बिताने की जिससे मैंने कसम ले ली थी। अफसोस, दिन-दिन उसकी शैतानियों का पता लगता ही जाता है।

वीरेन्द्रसिंह--इधर का हाल तो आपने नहीं सुना होगा?

इन्द्रदेव--जी भूतनाथ की जुबानी मैं सब हाल सुन चुका हूँ और इस सबब से ही हाजिर हुआ हूँ। मुझे यह देखकर बड़ी खुशी हुई कि लक्ष्मीदेवी को अपनायत के ढंग पर आपके सामने बैठने की इज्जत मिली है और वह बहुत तरह के दुःख सहने के बाद अब हर तरह से प्रसन्न और सुखी होना चाहती है।

वीरेन्द्रसिंह--निःसन्देह लक्ष्मीदेवी को मैं अपनी लड़की के समान देख रहा हूँ और उसके साथ तुमने जो कुछ नेकी की है उसका हाल भी उसी की जुबानी सुनकर बहुत प्रसन्न हूँ। इस समय मेरे दिल में तुमसे मिलने की इच्छा हो रही थी और किसी को तुम्हारे पास भेजने के विचार में ही था कि तुम आ पहुँचे। बलभद्रसिंह और भूतनाथ के पामले ने तो हम लोगों को अजब दुविधा में डाल रखा है, अब कदाचित् तुम्हरी जुबानी उनका खुलासा हाल मालूम हो जाय।

इन्द्रदेव--निःसन्देह वह एक आश्चर्य की घटना हो गई है जिसकी मुझे कुछ भी आशा न थी।

लक्ष्मीदेवी--(इन्द्रदेव से) मेरे प्यारे चाचा ! (लक्ष्मी इन्द्रदेव को चाचा कहके ही पुकारा करती थी) जब भूतनाथ की जुबानी आप सब हाल सुन चुके हैं तो निःसन्देह मेरी तरह आपको भी इस बात का विश्वास हो गया कि मेरे बदकिस्मत पिता अभी तक जीते हैं, मगर कहीं कैद हैं।

इन्द्रदेव--बेशक ऐसा ही है।

वीरेन्द्रसिंह--तो क्या भूतनाथ उन्हें खोज निकालेगा? इन्द्रदेव-इसमें मुझे सन्देह है, क्योंकि वह सब तरफ से लाचार होकर मुझसे मदद मांगने गया था और उसी की जुबानी सब हाल सुनकर मैं यहां आया हूँ।

वीरेन्द्रसिंह--तो तुम इस काम में उसको मदद दोगे?

इन्द्रदेव--अवश्य मदद दूंगा ! सचाई तो यह है कि इस समय बलभद्रसिंह को खोज निकालने की चाह बनिस्बत भूतनाथ के मुझको बहुत ज्यादा है और उनके जीते