सकता था कि यहाँ पर कोठरी है।
जब कोठरी का दरवाजा खुल गया तब इन्द्रदेव ने कमलिनी को छोड़ के बाकी औरतों को उस कोठरी के अन्दर कर देने के लिए तेजसिंह से कहा और तेजसिंह ने ऐसा ही किया। जब सब औरतें कोठरी के अन्दर चली गईं तब इन्द्रदेव ने हाथ से कड़ी छोड़ दी। तुरन्त ही उस कोठरी का दरवाजा बन्द हो गया और वह कड़ी छत के साथ इस तरह चिपक गई जैसे छत में कोई चीज लटकाने के लिए जड़ी हो।
इसके बाद इन्द्रदेव ने तीनों कैदियों को भी वहाँ से निकाल ले जाकर किसी दूसरी जगह बन्द कर देने का इरादा किया, मगर ऐसा करने का समय न मिला क्योंकि उसी समय पुनः 'सावधान-सावधान !' की आवाज आई और कैदखाने वाली कोठरी के बाहर बहुत से आदमियों के आ पहुँचने की आहट मिली। अतएव हमारे बहादुर लोग कमलिनी के सहित बाहर निकल आये। राजा वीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह ने म्यान से तलवारें निकाल लीं, कमलिनी ने तिलिस्मी खंजर सम्हाला, ऐयारों ने कमन्द और खंजर को दुरुस्त किमत, और इन्द्रदेव ने अपने बटुए में से छोटे-छोटे चार गेंद निकाले और लड़ने के लिए हर तरह से मुस्तैद होकर सभी के साथ कोठरी के बाहर निकल आया।
राजा वीरेन्द्रसिंह, उनके ऐयारों और इन्द्रदेव को विश्वास हो गया था कि उस गुप्त मनुष्य ने जो कुछ कहा वह सब ठीक है और शिवदत्त, माधवी और मनोरमा के साथ ही-साथ दिग्विजयसिंह का लड़का कल्याणसिंह और ऐयार लोग इस बात की फिक्र में थे कि जिस तरह हो सके चारों ही को नहीं तो कल्याणसिंह और शिवदत्त को तो जरूर ही पकड़ लेना चाहिए परन्तु वे लोग ऐसा न कर सके, क्योंकि कोठरी के बाहर निकलते ही जिन लोगों ने उन पर वार किया था वे सब के सब अपने चेहरों पर नकाब डाले हुए थे और इसलिए उनमें से अपने मतलब के आदमियों को पहचानना बड़ा कठिन था। इन्द्रदेव ने जल्दी के साथ कमलिनी से कहा, "तू हम लोगों के पीछे इसी दरवाजे के बीच में खड़ी रह, जब कोई तुझ पर हमला करे या इस कैदखाने के अन्दर जाने लगे तो तिलिस्मी खंजर से उसको रोकना" और कमलिनी ने ऐसा ही किया।
जब हमारे बहादुर लोग कैदखाने वाली कोठरी से बाहर निकले तो देखा कि उन पर हमला करने वाले सैकड़ों नकाबपोश हाथों में नंगी तलवारें लिए आ पहुँचे और 'मार-मार' कहकर तलवारें चलाने लगे तथा हमारे बहादुर लोग भी जो यद्यपि गिनती में उनसे बहुत कम थे दुश्मनों के वारों का जवाब देने और अपने वार करने लगे। हमारे दोनों ऐयारों ने मशालें जमीन पर फेंक दी क्योंकि दुश्मनों के साथ बहुत-सी मशालें थीं जिनकी रोशनी से दुश्मनों के साथ-ही-साथ हमारे बहादुरों का काम भी अच्छी तरह चल सकता था।
इसमें कोई शक नहीं कि दुश्मनों ने जी तोड़कर लड़ाई की और राजा वीरेन्द्र- सिंह वगैरह को गिरफ्तार करने का बहुत उद्योग किया, मगर कुछ भी न कर सके और हमारे बहादुर वीरेन्द्रसिंह तथा आफत के परकाले उनके ऐयारों ने ऐसी बहादुरी दिखाई कि दुश्मनों के छक्के छूट गये। राजा वीरेन्द्रसिंह की रुकने वाली तलवार ने तीस- आदमियों को उस लोक का रास्ता दिखाया, ऐयारों ने कमन्दों की उलझन में डालकर