पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/७४

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करने के लिए तैयार हो गई।

भूतनाथ के हाथ से क्षमा-प्रार्थना की सहायता छूटने की आशा मनोरमा को कुछ भी न थी, इसीलिए जब तक भूतनाथ ने उससे किसी तरह का सवाल न किया वह भी कुछ न बोली और बेउज्र हाथ-पैर बंधवाकर कैदियों की तरह मजबूर हो गई। इसके बाद भूतनाथ तथा सरयू सिंह में यों बातचीत होने लगी-

भूतनाथ--अब क्या करना होगा?

सरयू सिंह--अब यही करना होगा कि तुम इसे अपने घोड़े पर सवार करा के घर ले जाओ और हिफाजत के साथ रखकर शीघ्र लौट जाओ।

भूतनाथ--और उस धन्नूसिंह के बारे में क्या किया जाये जिसे आप गिरफ्तार करने के बाद बेहोश करके डाल आए हैं?

सरयूसिंह--(कुछ सोचकर) अभी उसे अपने कब्जे ही में रखना चाहिए क्योंकि मैं धन्नूसिंह की सुरत में राजा शिवदत्त के साथ रोहतासगढ़ तहखाने के अन्दर जाकर इन दुष्टों की चालबाजियों को जहाँ तक हो सके, बिगाड़ना चाहता हूँ। ऐसी अवस्था में अगर वह छूट जायेगा तो केवल काम ही नहीं बिगड़ेगा, बल्कि मैं खुद आफत में फंस जाऊँगा यदि शिवदत्त के साथ रोहतासगढ़ के तहखाने में जाने का साहस करूँगा।

इसके बाद सरयूसिंह ने भूतनाथ से वे बातें कहीं जो उससे शिवदत्त तथा कल्याण- सिंह से हुई थीं और जो हम ऊपर लिख आए हैं। उस समय मनोरमा को मालूम हुआ कि नकली धन्नूसिंह ने जिस भयानक कुत्ते वाली औरत का हाल शिवदत्त से कहा और जिसे मनोरमा की बहिन बताया था, वह सब विलकुल झूठ और बनावटी किस्सा था।

भूतनाथ--(सरयूसिंह से)तब तो आपको दुश्मनों के साथ मिल-जुलकर रोहतास- गढ़ तहखाने के अन्दर जाने का बहुत अच्छा मौका मिला है।

सरयूसिंह--हाँ, इसी से मैं कहता हूँ कि उस धन्नूसिंह को अभी अपने कब्जे में ही रखना चाहिए जिसे हम लोगों ने गिरफ्तार किया है।

भूतनाथ-कोई चिन्ता नहीं, मैं लगे हाथ किसी तरह उसे भी अपने घर पहुंचा दूंगा। (शागिर्द की तरफ इशारा करके) इसे तो आप मनोरमा बनाकर अपने साथ ले जाएँगे ?

सरयूसिंह--जरूर ले जाऊँगा और कल्याणसिंह के बताये हुए ठिकाने पर पहुँच- कर उन लोगों की राह देखूंगा।

भूतनाथ--और मुझको क्या काम सुपुर्द किया जाता है?

सरयूसिंह--मुझे इस बात का पता ठीक-ठीक लग चुका है कि शेरअलीखाँ आजकल रोहतासगढ़ में है और कुंअर कल्याणसिंह उससे मदद लिया चाहता है। ताज्जुब नहीं कि अपने दोस्त का लड़का समझकर शेरअलीखाँ उसकी मदद करे, और अगर ऐसा हुआ तो राजा वीरेन्द्रसिंह को बड़ा नुकसान पहुँचेगा।

भूतनाथ--मैं आपका मतलव समझ गया, अच्छा तो इस काम से छुट्टी पाकर मैं बहुत जल्द रोहतासगढ़ पहुँचंगा और शेरअलीखाँ की हिफाजत करूँगा।(कुछ सोचकर) मगर इस बात का खौफ है कि अगर मेरा वहाँ जाना राजा वीरेन्द्रसिंह पर खुल जायेगा