पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/७५

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तो कहीं मुझे बलभद्रसिंह का बिना पता लगाये लौट आने के जुर्म में सजा तो न मिलेगी? (इतना कहकर भूतनाथ ने मनोरमा की तरफ देखा)।

सरयूसिंह--नहीं-नहीं, ऐसा न होगा, और अगर हुआ भी तो मैं तुम्हारी मदद करूँगा।

बलभद्रसिंह का नाम सुनकर मनोरमा जो सब बातचीत सुन रही थी चौंक पड़ी और उसके दिल में एक हौल-सा पैदा हो गया। उसने अपने को रोकना चाहा, मगर रोक न सकी और घबराकर भूतनाथ से पूछ बैठी, "बलभद्रसिंह कौन ?"

भूतनाथ--(मनोरमा से) लक्ष्मीदेवी का बाप, जिसका पता लगाने के लिए ही हम लोगों ने तुझे गिरफ्तार किया है।

मनोरमा--(घबराकर)मुझसे और उससे भला क्या सम्बन्ध ? मैं क्या जानूं, वह कौन है, कहाँ है और लक्ष्मी देवी किसका नाम है !

भूतनाथ--खैर, जब समय आवेगा तो सब कुछ मालूम हो जायेगा। (हँसकर) लक्ष्मीदेवी से मिलने के लिए तो तुम लोग रोहतासगढ़ जाते ही थे, मगर बलभद्रसिंह और इन्दिरा से मिलने का बन्दोबस्त अब मैं करूँगा, घबराती काहे को हो !

मनोरमा--(घबराहट के साथ ही बेचैनी से)इन्दिरा, कैसी इन्दिरा ?ओफ !नहीं- नहीं, मैं क्या जानूं कौन इन्दिरा ! क्या तुम लोगों से उसकी मुलाकात हो गई ?क्या उसने मेरी शिकायत की थी ! कभी नहीं, वह झूठी है, मैं तो उसे प्यार करती थी और अपनी बेटी समझती थी : मगर उसे किसी ने बहका दिया है या बहुत दिनों तक दुःख भोगने के कारण वह पागल हो गई है, या ताज्जुब नहीं कि मेरी सूरत बनाकर किसी ने उसे धोखा दिया हो। नहीं-नहीं, वह मैं न यी कोई दूसरी थी, मैं उसका भी नाम बताऊँगी। (ऊँची साँस लेकर) नहीं-नहीं, इन्दिरा नहीं, मैं तो मथुरा गई हुई थी, वह कोई दूसरी ही थी, भला मैं तेरे साथ क्यों ऐसा करने लगी थी ! ओफ ! मेरे पेट में दर्द हो रहा है, आह, आह, मैं क्या करूँ !

मनोरमा की अजब हालत हो गई। उसका बोलना और बकना पागलों की तरह मालूम पड़ता था जिसे देख भूतनाथ और सरयूसिंह आश्चर्य करने लगे, मगर दोनों ऐयार इतना तो समझ ही गये कि दर्द का बहाना करके मनोरमा अपने असली दिली दर्द को छिपाना चाहती है जो होना कठिन है।

सरयूसिंह--(भूतनाथ से)खैर अब इसका पाखण्ड कहाँ तक देखोगे, बस, झटपट ले जाओ और अपना काम करो। यह समय अनमोल है और इसे नष्ट न करना चाहिए। (अपने शागिर्द की तरफ इशारा करके) इसे हमारे पास छोड़ जाओ, मैं भी अपने काम की फिक्र में लगूं।

भूतनाथ ने बेहोशी की दवा सुंघाकर मनोरमा को बेहोश किया और जिस घोड़े पर वह आई थी उसी पर उसे लाद आप भी सवार हो पूरब का रास्ता लिया। उधर सरयूसिंह अपने चेले को मनोरमा बनाने की फिक्र में लगा।