पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/८२

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मालूम हुआ कि नीचे से यह कुआँ बहुत चौड़ा है और उसकी दीवार चिकनी तथा संगीन है। टटोलते और घूमते हुए एक छोटे-से बन्द दरवाजे पर इनका हाथ पड़ा, वहाँ वह ठहर गए और कुछ सोचकर आगे बढ़े । तीन-चार कदम के बाद फिर एक बन्द दरवाजा मिला, उसे भी छोड़ और आगे बढ़े। इसी तरह घूमते हुए इन्हें चार दरवाजे मिले जिनमें दो तो खुले हुए थे और दो बन्द । आनन्दसिंह ने सोचा कि बेशक इन्हीं दोनों दरवाजों में से जो खुले हुए हैं किसी एक दरवाजे में कुंअर इन्द्रजीतसिंह गए होंगे। बहुत सोचने- विचारने के बाद आनन्दसिंह ने भी एक दरवाजे के अन्दर पैर रक्खा मगर दो ही चार कदम आगे गए होंगे कि पीछे से दरवाजा बन्द होने की आवाज आई । उस समय उन्हें विश्वास हो गया कि हमने धोखा खाया, कुंअर इन्द्रजीतसिंह किसी दूसरे दरवाजे अन्दर गये होंगे और वह दरवाजा भी उनके जाने के बाद इसी तरह बन्द हो गया होगा। अफसोस करते हुए आगे की तरफ बढ़े मगर दो ही चार कदम जाने के बाद अन्धकार के सबब से जी घबड़ा गया। उन्होंने कमर से तिलिस्मी खंजर निकाल उसका कब्जा दबाया जिससे बहुत तेज रोशनी हो गई और वहाँ की हर एक चीज साफ-साफ दिखाई देने लगी। कुमार ने अपने को एक कोठरी में पाया जिसमें चारों तरफ दरवाजे बने थे। उनमें एक दरवाजा तो वही था जिससे कुमार आए थे और बाकी के तीन दरवाजे बन्द थे और उनकी कुण्डियों में ताला लगा हुआ था, मगर उस दरवाजे में कोई ताला या ताले का निशान या जंजीर न थी जिससे कुमार आये थे। चारों तरफ की संगीन दीवारों में कई बड़े-बड़े सूराख थे जिनमें से हवा आती और निकल जाती थी। जिस दरवाजे से कुमार आए थे उसके पास जाकर उसे खोलना चाहा मगर किसी तरह से वह दरवाजा न खुला, तब दूसरे दरवाजे के पास आए, तिलिस्मी खंजर से उसकी जंजीर काटकर दरवाजा खोला और उसके अन्दर गए । यह कोठरी बनिस्बत पहले के तिगुनी लम्बी थी। जमीन और दीवार संगमरमर की बनी हुई थी और हवा आने-जाने के लिए दीवारों में सुराख भी थे। इस कमरे के बीचोंबीच में एक ऊँचा चबूतरा था और उस पर एक बड़ा संदूक, जो असल में बाजा था, रक्खा हुआ था । कुमार के अन्दर आते ही वह बाजा बजने लगा और उसकी सुरीली आवाज ने कुमार का दिल अपनी तरफ खींच लिया। चारों तरफ दीवारों में बड़ी-बड़ी तस्वीरें लगी हुई थीं जिनमें एक तस्वीर बहुत ही बड़ी और जड़ाऊ चौखटे के अन्दर थी। इस तस्वीर में किसी तरह की चमक देखकर कुमार ने अपने खंजर की रोशनी बन्द कर दी । उस समय मालूम हुआ कि यहाँ की सब तस्वीरें इस तरह चमक रही हैं कि उनके देखने के लिए किसी तरह की रोशनी की दरकार नहीं । कुमार उस बड़ी तस्वीर को गौर से देखने लगे । देखा कि जड़ाऊ सिंहासन पर एक बूढ़े महाराज बैठे हैं । उम्र अस्सी वर्ष से कम न होगी, सफेद लम्बी दाढ़ी नाभि तक लटक रही है, जड़ाऊ मुकुट माथे पर चमक रहा है, कपड़ों पर काढ़ी बेलों में मोती और जवाहरात के फूल और बेल-बूटे बने हुए हैं। सामने सोने की चौकी पर एक ग्रन्थ रक्खा हुआ है और पास ही


1. हरएक कोठरी या कमरे में, जहाँ जहाँ ये दोनों कुमार गए थे, दीवारों में सूराख देखा, जिनसे हवा आने के लिए रास्ता था।