पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/९०

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चाहे वहाँ जा सकता हूँ, कोई रोकने वाला नहीं । यहाँ मेरा आना कैसे हुआ इसका जवाब भी देता हूँ। मुझे और इन्द्रदेव के ऐयार सरयूसिंह को किसी तरह इस बात की खबर लग गई कि राजा शिवदत्त और कल्याणसिंह कैद से छूट गये हैं और बहुत से लड़ाकों को लेकर तहखाने के रास्ते से रोहतासगढ़ में पहुँच फसाद मचाना चाहते हैं । इस खबर ने हम दोनों को होशियार कर दिया । सरयूसिंह तो दुश्मनों के साथ भेष बदले हुए तहखाने में जा घुसा और मैं बाहर से इन्तजार करने के लिए आया था। यह न समझियेगा कि मैं सीधा आप के पास चला आया, नहीं, मैं हर तरह का इंतजाम करने के बाद यहां आया हूँ । इस समय इस किले के अन्दर वाली फौज लड़ने के लिए तैयार और मुस्तैद है, बहा- दुर लोग चौकन्ने और महल के सब दरवाजों पर मुस्तैद हैं, तोपें गोले उगलने के लिए तैयार हैं, और ऐयारों के जाल भी हर तरफ फैले हुए हैं । मगर इस बात की खबर मुझे कुछ भी नहीं है कि तहखाने के अन्दर क्या हो रहा है या क्या हुआ ।

शेरअलीखां--बेशक तहखाने के अन्दर दुश्मनों ने जरूर गहरा उत्पात मचाया होगा। अफसोस ! आज ही के दिन राजा वीरेन्द्रसिंह वगैरह को तहखाने के अन्दर जाना था।

भूतनाथ--इस खबर ने तो मुझे और भी बदहवास कर रक्खा है। क्या करूं, तहखाने का कुछ भी भेद मुझे मालूम नहीं है और न उसके पेचीले तथा मकड़ी के जाले की तरह उलझन डालने वाले रास्तों की ही मुझे अच्छी तरह खबर है, नहीं तो इस समय मैं अवश्य तहखाने के अन्दर पहुंच जाता और अपनी बहादुरी तथा ऐयारी का तमाशा दिखलाता !

शेरअली–-बेशक ऐसा ही है। इस समय मेरा दिल भी इस खयाल से बेचैन हो रहा है कि तहखाने के अन्दर जाकर राजा साहब की कुछ भी मदद नहीं कर सकता। अभी थोड़ी ही देर हुई जब मेरे दिल में यह बात पैदा हुई कि जिस राह से कल्याणसिंह और उसके मददगार इस कमरे में आये हैं उसी राह से हम लोग भी तहखाने के अन्दर जाकर कोई काम करें, मगर बड़े ताज्जुब की बात है कि वह रास्ता भी बन्द हो गया। जहाँ तकमैं खयाल करता हूँ यह काम कल्याणसिंह के किसी पक्षपाती का नहीं है ।

भूतनाथ--मैं भी ऐसा ही समझता हूँ। (कुछ सोच कर) हाँ एक बात और भी मेरे ध्यान में आती है।

शेरअली--वह क्या ?

भूतनाथ--यह तो निश्चय हो ही गया कि हम लोग किसी तरह तहखाने के अन्दर जाकर मदद नहीं कर सकते और न इस किले में रहने में ही किसी तरह का फायदा है। शेरअली बेशक ऐसा ही है।

भूतनाथ--तब हमको खोह के उस मुहाने पर पहुंचना चाहिए जिस राह से दुश्मन लोग इस तहखाने में आये हैं। ताज्जुब नहीं कि दुश्मन लोग अपना काम करके या भाग के उसी राह से तहखाने के बाहर निकलें। यदि ऐसा हुआ तो निःसन्देह हम लोग कोई अच्छा काम कर सकेंगे।