पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 4.djvu/९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
95
 

गोपालसिंह--औरत ! यहाँ पर !

आनन्दसिंह--जी हाँ।

गोपालसिंह--यह तो एक आश्चर्य की बात तुमने कही ! अच्छा खुलासा कह जाओ। आनन्दसिंह अपना हाल खुलासा बयान कर गये, जिसे सुनकर गोपालसिंह को बड़ा ही ताज्जुब हुआ और वे बोले, "खैर थोड़ी देर के बाद इस पर गौर करेंगे। किसी औरत का यहाँ आना निःसन्देह आश्चर्य की बात है।"

इन्द्रजीतसिंह--(खून से लिखी किताब दिखा कर) मेरी राय है कि आप इस किताब को पढ़ जायें और जो तिलिस्मी किताब आपके पास है उसे पढ़ने के लिए मुझे दे दें।

गोपालसिंह--निःसन्देह वह किताब आपके पढ़ने के लायक है, उससे आपको बहुत फायदा पहुंचेगा और खाने-पीने तथा समय पड़ने पर इस तिलिस्म से बाहर निकल जाने में कोई अड़चन न पड़ेगी और यहाँ के कई गुप्त भेद भी आप लोगों को मालूम हो जायेंगे । आप इस बाजे की ताली निकालने का उद्योग कीजिए, तब तक मैं जाकर वह किताब ले आता हूँ।

इन्द्रजीतसिंह--बहुत अच्छी बात है, मगर बाजे की ताली निकालने के समय आप यहां मौजूद क्यों नहीं रहते ? आपसे बहुत-कुछ मदद हम लोगों को मिलेगी।

गोपालसिंह--क्या हर्ज है, ऐसा ही सही, आप लोग उद्योग करें।

यह तो मालूम ही हो चुका था कि बाजे की ताली उसी चबूतरे में है जिस पर बाजा रक्खा या जड़ा हुआ है । अस्तु, तीनों भाई उसी चबूतरे की तरफ बढ़े । राजा गोपालसिंह के पास भी तिलिस्मी खंजर मौजूद था जिसे उन्होंने हाथ में ले लिया और कब्जा दवा कर रोशनी करने के बाद कहा, "आप दोनों आदमी उद्योग करें, मैं रोशनी दिखाता हूँ।"

आनन्दसिंह--(आश्चर्य से)आप भी अपने पास तिलिस्मी खंजर रखते हैं ?

गोपालसिंह--हां, इसे प्रायः अपने पास रखता हूँ और जब तिलिस्म के अन्दर आने की आवश्यकता पड़ती है तब तो अवश्य ही रखना पड़ता है क्योंकि बड़े लोग ऐसा करने के लिए लिख गये हैं।

कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह दोनों भाई बाजे वाले चबूतरे के चारों तरफ घूमने और उसे ध्यान देकर देखने लगे। वह चबूतरा किसी प्रकार की धातु का और चौखूटा बना हुआ था। उसके दो तरफ तो कुछ भी न था, मगर बाकी दो तरफ मुट्ठ लगे हुए थे जिन्हें देख इन्द्रजीतसिंह ने आनन्दसिंह से कहा, "मालूम होता है कि ये दोनों मुळे पकड़ कर खींचने के लिए बने हुए हैं।"

आनन्दसिंह--मैं भी यही समझता हूँ।

इन्द्रजीतसिंह--अच्छा खींचो तो सही।

आनन्दसिंह--(मुठे को अपनी तरफ खींच और घुमाकर)यह तो अपनी जगह से हिलता नहीं ! मालूम होता है कि हम दोनों को एक साथ उद्योग करना पड़ेगा और इसी