पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/११५

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एक दफे यहाँ पहले भी आ चुका हूँ।

मायारानी––कब?

नानक––जब तेजसिंह को आपने कैद किया था और जब चंडूल ने आकर आप लोगों को छकाया था।

मायारानी––(उन बातों की याद से काँपकर) तब तो तुम्हें मालूम होगा कि वह चंडूल कौन था।

नानक––वह कमलिनी थी और मैं उसके साथ था।

मायारानी––(कुछ सोचकर) हाँ...ठीक है। त...तब तो तुम्हें...अच्छा...अच्छा तुम मेरे पास आओ, पहले मैं निश्चय कर लूँ कि तुम ईमानदारी से साथ देने के लिए तैयार हो या सब बातें धोखा देने के लिए कह रहे हो। इसके बाद अगर तुम सच्चे निकले तो हम दोनों आदमी मिलकर बहुत-बड़ा काम कर सकेंगे और तुम्हें भी बहुत-सी...खैर तुम इधर आओ और मेरे साथ एकान्त में चलो।

नानक––(मायारानी के पास आकर) और यहाँ तीसरा कौन है जो हम लोगों की बातें सुनेगा?

मायारानी––चाहे न हो, मगर शक तो है।

मायारानी नानक को लिए दूसरी तरफ चली गई।


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संध्या होने में अभी दो घण्टे से कुछ ज्यादा देर थी जब कुँअर इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह और भैरोंसिंह कमरे से बाहर निकलकर बाग के उस हिस्से में घूमने लगे जो तरह-तरह के खुशनुमा पेड़ों-फूल-पत्तों, गमलों और फैली हुई लताओं से सुन्दर और सुहावना मालूम पड़ता था क्योंकि इन तीनों को इन्द्रानी के मुँह से निकले हुए ये शब्द बखूबी याद थे कि 'मगर आप लोग किसी मकान के अन्दर जाने का उद्योग न करें!'

भैरोंसिंह––(घूमते हुए एक फूल तोड़कर) यहाँ एक तो बगीचे के लिए बहुत कम जमीन छोड़ी गई है दूसरे जो कुछ जमीन छोड़ी गई है उसमें भी काम खूबी और खूबसूरती के साथ नहीं लिया गया है। जहाँ पर जिस ढंग के पेड़ होने चाहिए वैसे नहीं लगाये गये हैं।

आनन्दसिंह––शौकीन लोग प्रायः बेला, चमेली, जुही और गुलाब आदि खुशबूदार फूलों के पेड़ क्यारियों के बीच में लगाते हैं।

इन्द्रजीतसिंह––ऐसा नहीं होना चाहिए, क्यारियों के अन्दर केवल पहाड़ी गुल बूटों के ही लगाने में मजा है। जूही, बेला, मोतिया इत्यादि देशी खूशबूदार फूलों को रविशों के दोनों तरफ लगाना चाहिए, जिसमें सैर करने वाला घूमता-फिरता जब चाहे एक-दो फल तोड़ के सूंघ सके।