आनन्दसिंह––वेशक ऐसा न होना चाहिए कि खुशबूदार फूल तोड़ने की लालच में कहीं सैर करने वाला बुद्धि-विसर्जन करके क्यारी के बीच में पैर रक्खे और जूते समेत फिल्ली तक जमीन के अन्दर जा रहे, क्योंकि सिंचाई का पानी क्यारियों में जमा होकर कीचड़ करता है, इसलिए क्यारियों के बीच में उन्हीं पेड़-पौधों का होना आवश्यक है जिन्हें केवल देखने ही में तृप्ति हो जाय और जिनमें ज्यादा सर्दी और पानी के बर्दाश्त करने की ताकत हो।
भैरोंसिंह––मेरी भी यही राय है, मगर साथ ही इसके मैं यह भी कहूँगा कि गुलाब के पेड़ रविशों के दोनों तरफ न लगाने चाहिए जिसमें काँटों की बदौलत सैर करने वाले के (यदि वह भूल से कुछ किनारे की तरफ जा रहे तो) कपड़ों की दुर्गति हो जाय, उसके लिए क्यारी अलग ही होनी चाहिए जिसकी जमीन बहुत नम न हो।
इन्द्रजीतसिंह––ठीक है, इसी तरह चमेली के पेड़ों की कतार भी ऐसी जगह लगानी चाहिए जहाँ टट्टी बनाकर आड़ कर देने का इरादा हो।
भैरोंसिंह––आड़ का काम तो मेंहदी की टट्टी से भी लिया जाता है।
इन्द्रजीतसिंह––हाँ लिया जाता है मगर जमीन के उस हिस्से में जो बीच वाली या खास जलसे वाली इमारत से कुछ दूर हो, क्योंकि मेंहदी जब फूलती है तो अपने सिवाय और फूलों की खुशबू का आनन्द लेने की इजाजत नहीं देती।
आनन्दसिंह––जैसे कि अब भैरोंसिंह को हम लोग अपने साथ चलने की इजाजत न देंगे।
भैरोंसिंह––(चौंककर) हैं, इसका क्या मतलब?
आनन्दसिंह––इसका मतलब यही है कि अब आप थोड़ी देर के लिए हम दोनों भाइयों का पिण्ड छोड़िये और कुछ दूर हटकर उधर की रविशों पर पैर थकाइए।
भैरोंसिंह––(कुछ चिढ़कर) क्या अब मुझ ऐसे साथी और ऐयार से भी बात छिपाने की नौबत आ गई?
आनन्दसिंह––(इन्द्रजीतसिंह का इशारा पाकर) हाँ, और इसलिए कि बात छिपाने का कायदा तुम्हारी तरफ से जारी हो गया।
भैरोंसिंह––सो कैसे?
आनन्दसिंह––अपने दिल से पूछो।
भैरोंसिंह––क्या मैं वास्तव में भैरोंसिंह नहीं हूँ?
आनन्दसिंह––तुम्हारे भैरोंसिंह होने में कोई शक नहीं है बल्कि तुम्हारी बातों की सचाई में शक है।
भैरोंसिंह––यह शक कब से हुआ?
आनन्दसिंह––जब से तुमने स्वयं कहा कि राजा गोपालसिंह ने तुम्हें इस तिलिस्म में पहुँचते समय ताकीद कर दी थी सब काम कमलिनी की आज्ञानुसार करना, यहाँ तक कि यदि कमलिनी तुम्हें सामना हो जाने पर भी कुमार से मिलने के लिए मना करे
च॰ स॰-5-7