पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/११८

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अच्छी तरह से न कर सकी और उनके गुरु महाराज ने उन्हें आप लोगों का सामना करने से रोक दिया।

इन्द्रजीतसिंह––आखिर इसका कोई सबब भी है?

औरत––इसके सिवाय तो और कोई सबब नहीं जान पड़ता कि उन दोनों की शादी आप दोनों भाइयों के साथ होने वाली है।

इन्द्रजीतसिंह––(ताज्जुब के साथ) मुझसे और आनन्द से?

औरत––जी हाँ।

इन्द्रजीतसिंह––हमारे या हमारे बुजुर्गों की इच्छा के बिना ही।

औरत––जी हाँ।

इन्द्रजीतसिंह––चाहे हम लोग राजी हों या न हों?

औरत––जी हाँ।

इन्द्रजीतसिंह––तब तो यह खांसी जबर्दस्ती है!

औरत––जी हाँ।

इन्द्रजीतसिंह––क्या उनके गुरु महाराज में इतनी सामर्थ्य है कि अपनी इच्छानुसार हम लोगों के साथ बर्ताव करें?

औरत––जी हाँ।

इन्द्रजीतसिंह––(झुँझलाकर) कभी नहीं, कदापि नहीं!

आनन्दसिंह––ऐसा हो ही नहीं सकता! (औरत से, जो जाने के लिए अपना मुँह फेर चुकी थी) क्या तुम जाती हो?

औरत––जी हाँ।

इन्द्रजीतसिंह––बस, इतना ही कहने के लिए आई थीं?

औरत––जी हाँ।

इन्द्रजीतसिंह––क्या भेजने वालों ने तुम्हें कह दिया था कि 'जी हाँ' के सिवाय और कुछ मत बोलना?

औरत––जी हाँ।

इन्द्रजीतसिंह की झुँझलाहट देखकर उस औरत को भी हँसी आ गई और वह मुस्कुराती हुई जिधर से आई थी उधर ही चली गई तथा थोड़ी दूर जाकर नजरों से गायब हो गई। तब भैरोंसिंह ने दिल्लगी के तौर पर कुमार से कहा, "आप लोगों की खुशकिस्मती का कोई ठिकाना है! रम्भा और उर्वशी के समान औरतें जबर्दस्ती आप लोगों के गले मढ़ी जाती हैं, तिस पर मजा यह कि आप लोग नखरा करते हैं। ऐसा ही है तो मुझे कहिए मैं आपकी सूरत बनकर व्याह कर लूँ।

इन्द्रजीतसिंह––तब कमला किसके नाम की हाँडी चढ़ावेगी?

भैरोंसिंह––अजी कमला से क्या जाने कब मुलाकात हो और क्या हो! यह तो परोसी हुई थाली ठहरी।

इन्द्रजीतसिंह––ठीक है मगर भैरोंसिंह, जहाँ तक मेरा खयाल है, मैं समझता हूँ कि तुम्हें इस ब्याह-शादी वाले मामले की कुछ-न-कुछ खबर जरूर है।