पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१२१

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विचार किया जा चुका है और ज्योतिषी ने भी निश्चय दिला दिया है कि इस शादी का नतीजा दोनों तरफ बहुत अच्छा निकलेगा। यद्यपि आप इस समय प्रसन्न नहीं होते परन्तु अन्त में बहुत ही प्रसन्न होंगे। अच्छा इस समय तो मैं जाता हूँ क्योंकि मैं केवल इत्तिला करने के लिए आया था वाद-विवाद करने के लिए नहीं, परन्तु इसका जवाब पाने के लिए कल प्रातःकाल अवश्य आऊँगा।

इतना कहकर दारोगा उठ खड़ा हुआ और जावब का इन्तजार कुछ भी न करके जिधर से आया था उधर ही चला गया। उसके जाने के बाद कुछ देर तक तो दोनों भाई उसी जगह बातचीत करते रहे और इसके बाद जरूरी कामों से छुट्टी पाकर और उसी बावली पर संन्ध्या-वन्दन कर पुनः उस कमरे में चले आये जिसमें दोपहर तक बिता चुके थे। इस समय संध्या हो चुकी थी और कुमारों को यह देखकर ताज्जुब हो रहा था कि उस कमरे में रोशनी हो चुकी थी मगर किसी गैर की सूरत दिखाई नहीं पड़ती थी।

कुमार को उस कमरे में गए बहुत देर न हुई होगी कि इन्द्रानी और आनन्दी वहाँ आ पहुँचीं जिन्हें देख कुमार बहुत खुश हुए और इन्द्रजीतसिंह ने इन्द्रानी से कहा, "तुमने तो कहला भेजा था कि अब मैं मुलाकात नहीं कर सकती!"

इन्द्रानी––बेशक बात ऐसी ही है, मगर मैं छिप कर आपसे कुछ कहने के लिए आई हूँ।

इन्द्रजीतसिंह––वह कौन सी बात है जिसने तुम्हें छिप कर यहाँ आने के लिए मजबूर किया और वह कौन सा कसूर है जिसने मुझे तुम्हारा मेहमान···

इन्द्रानी––(बात काट कर और मुस्कुरा कर) मैं आपकी सब बातों का जवाब दूँगी, आप मेहरबानी करके जरा मेरे साथ इस दूसरे कमरे में आइये।

इन्द्रजीतसिंह––क्या मेरी चिट्ठी का जवाब भी लाई हो?

इन्द्रानी––जी हाँ, जवाब की चिट्ठी भी इसी समय आपको दूँगी। (इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह को उठते देखकर आनन्दसिंह से) आप इसी जगह ठहरिये, (आनन्द से) तू भी इसी जगह ठहर, मैं अभी आती हूँ।

इन्द्रजीतसिंह यद्यपि इन्द्रानी के साथ शादी करने से इनकार करते थे, मगर इन्द्रानी और आनन्दी की खूबसूरती, बुद्धिमानी, सभ्यता और उनकी मीठी बातें इस योग्य न थीं कि कुमार के दिल पर गहरा असर न करतीं और सामना होने पर उन्हें अपनी तरफ न खींचतीं। इन्द्रजीतसिंह इन्द्रानी की बात से इनकार न कर सके और खुशी-खुशी उसके साथ दूसरे कमरे में चले गये।

हम नहीं कह सकते कि इन्द्रजीतसिंह और इन्द्रानी में दो घण्टे तक क्या बातें हुईं और इधर आनन्दसिंह और आनन्दी में कैसी ठहरी, मगर इतना जरूर कहेंगे कि जब इन्द्रजीतसिंह और इन्द्रानी दोनों आदमी लौटकर कमरे में आये तो बहुत खुश थे और इसी तरह आनन्दी और आनन्दसिंह के चेहरे पर भी खुशी की निशानी पाई जाती थी। इन्द्रानी और आनन्दी के चले जाने-बाद कई औरतें खाने पीने का सामान लेकर हाजिर हुईं और दोनों भाई भोजन करके सो रहे। सुबह को जब वह दारोगा अपनी बातों का