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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१३३

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खुल गया और ज्यादा रोशनी के सबब भीतर के जगमगाते हुए सामान तथा कई औरतों पर दोनों कुमारों की निगाह पड़ी जो उन्हें देखते ही उठ खड़ी हुई और जिनमें से एक को छोड़ बाकी की सभी ने कुँअर इन्द्रजीतसिंह को और कई ने आनन्दसिंह को भी प्रणाम किया।

वह औरत जिसने कुमार को सलाम नहीं किया, लक्ष्मीदेवी थी और वह राजा गोपालसिंह की जुबानी यह सुन चुकी थी कि दोनों कुमार उनके छोटे भाई हैं, अतः दोनों कुमारों ने स्वयं लक्ष्मीदेवी को सलाम किया और उनकी पिछली अवस्था पर अफसोस करके पुनः जमानिया की रानी बनने पर प्रसन्नता के साथ मुबारकबाद देने के बाद और विषयों में भी देर तक उससे बातें करते रहे। इसके बाद किशोरी, कामिनी इत्यादि से बातचीत तकी नौबत पहुँची। किशोरी और इन्द्रजीतसिंह में तथा कामिनी और आनन्दसिंह में सच्ची और बढ़ी-चढ़ी मुहब्बत थी, परन्तु धर्म, लज्जा और सभ्यता का पल्ला भी उन लोगों ने मजबूती के साथ पकड़ा हुआ था। इसलिए यद्यपि यहाँ पर कोई बड़ी-बूढ़ी औरत मौजूद न थी जिससे विशेष लज्जा करनी पड़ती तथापि इन चारों ने इस समय बनिस्बत जुबान के विशेष करके आँखों के इशारों तथा भावों ही में अपने दुःख-दर्द और जुदाई के सदमे को झलकाकर उपस्थित अवस्था तथा इस अनोखे मेल-मिलाप पर प्रसन्नता प्रकट की। कमलिनी, लाड़िली, कमला, सरयू और इन्दिरा आदि से भी कुशल-क्षेम पूछने के बाद इन लोगों में यों बातें होने लगीं––

इन्द्रजीतसिंह––(लक्ष्मीदेवी से) आपको इस बात की शिकायत तो जरूर होगी कि आपको हद से ज्यादा दुःख भोगना पड़ा, मगर यह जानकर आप अपना दुःख जरूर भूल गई होंगी कि भाई साहब ने कम्बख्त मायारानी की बदौलत जो कुछ कष्ट भोगा उसे भी कोई साधारण मनुष्य सहन नहीं कर सकता।

लक्ष्मीदेवी––निःसन्देह ऐसा ही है, क्योंकि मुझे तो किसी-न-किसी तरह आजादी की हवा मिल भी रही थी मगर उन्हें अंधेरी कोठरी में जिस तरह रहना पड़ा वैसा ईश्वर न करे, किसी दुश्मन को भी नसीब हो।

इन्द्रजीतसिंह––(मुस्कराकर) मगर मैंने तो सुना था कि आप उनसे नाराज हो गई हैं और जमानिया जाने में...

कमलिनी––(हँसकर) ये बनिस्बत उनके जिन्न को ज्यादा पसन्द करती थीं।

लक्ष्मीदेवी––वास्तव में उन्होंने बड़ा भारी धोखा दिया था।

कमला––आपने ठीक कहा, क्योंकि ऐयारी दोनों ही ने की थी।

कमलिनी––ओफ, जब मैं वह समय याद करती हूँ, जब ये तारा बनकर मेरे यहाँ रहतीं और ऐयारी का काम करती थीं, तो मुझे आश्चर्य होता है। वास्तव में इनकी ऐयारी बहुत अच्छी होती थी और ये दुश्मनों का पता खूब लगाती थीं। रोहतासगढ़ पहाड़ी के नीचे जब मायारानी का ऐयार कंचनसिंह को मारकर आपको रथ पर सुला के ले गया था तब भी इन्होंने मुझे वह खबर कुछ ही देर पहले पहुँचाई थी।

इन्द्रजीतसिंह––(ताज्जुब से) हाँ! तब तो इनका बहुत बड़ा अहसान मेरी गर्दन पर भी है! ओफ, वह जमाना भी कैसा भयानक था! मजा तो यह था कि दुश्मन लोग