पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१६२

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इन्द्रदेव––(हाथ जोड़कर महाराज सुरेन्द्रसिंह से) मेरे मित्र बलभद्रसिंह जो कुछ कह रहे हैं ठीक है और आशा है कि महाराज भी इस बात को स्वीकार कर लेंगे।

सुरेन्द्रसिंह––(पन्नालाल से) खैर ऐसा ही किया जाय, इन्द्रदेव का डेरा बलभद्रसिंह के साथ ही करा दो जिसमें ये दोनों मित्र प्रसन्नता से आपस में बातें करते रहें।

इन्द्रदेव––(हाथ जोड़कर) मैं भी यही अर्ज किया चाहता था। आज न मालूम किस तरह, कितने दिनों के बाद मुझे ईश्वर ने मित्र-दर्शन का सुख दिया है, सो भी ऐसे मित्र का दर्शन जिसके मिलने की आशा कर ही नहीं सकते थे और इसके लिए हम लोग भूतनाथ के बड़े ही कृतज्ञ हैं।

भूतनाथ––यह सब महाराज के चरणों का प्रताप है जिनके सदैव दर्शन के लोभ से महाराज का कुछ न बिगाड़ने पर भी मैं अपने को दोषी बनाए और भगवती की कृपा पर भरोसा किए बैठा हुआ हूँ।

इन्द्रदेव––(महाराज की तरफ देख के) वास्तव में ऐसा ही है। अभी तक जो कुछ मालूम हुआ है उससे तो यही जाना जाता है कि भूतनाथ ने महाराज के यहाँ एक दफे चोरी करने के अतिरिक्त और कोई काम ऐसा नहीं किया जिससे महाराज या महाराज के सम्बन्धियों को दुःख हो––

भूतनाथ––(लज्जा से नीची गर्दन करके) और सो भी बदनीयती के साथ नहीं!

इन्द्रदेव––आगे चलकर और कोई बात जानी जाय तो मैं नहीं कह सकता, मगर––

भूतनाथ––ईश्वर न करे, ऐसा हो।

वीरेन्द्रसिंह––भूतनाथ ने अगर हम लोगों का कोई कसूर किया भी हो तो अब हम लोग उस पर ध्यान नहीं दे सकते, क्योंकि रोहतासगढ़ के तहखाने में मैं भूतनाथ का कसूर माफ कर चुका हूँ।

भूतनाथ––ईश्वर आपका सहायक रहे!

इन्द्रदेव––लेकिन अगर भूतनाथ ने किसी ऐसे के साथ बुरा बर्ताव किया हो जिससे आज के पहले महाराज का कोई सम्बन्ध न था तो उस पर भी महाराज को विशेष ध्यान न देना चाहिए। तेजसिंह जी हाँ, मगर इसमें कोई शक नहीं कि भूतनाथ की रहस्यमय जीवनी अनेक अद्भुत अनूठी और दुःखद घटनाओं से भरी हुई है। मैं समझता हूँ कि भूतनाथ ने लोगों के दिल पर अपना भयानक प्रभाव तो पैदा किया, परन्तु अपने कामों की बदौलत अपने को सुखी न बना सका, उलटा इसने जमाने को दिखा दिया कि प्रतिष्ठा और सभ्यता का पल्ला छोड़कर केवल लक्ष्मी काक्षकृपा-पात्र बनने के लिए उद्योग और उत्साह दिखाने वाले का परिणाम कैसा होता है।

इन्द्रदेव––निःसन्देह ऐसा ही है। अगर भूतनाथ उसके साथ-ही-साथ प्रतिष्ठा का पल्ला भी मजबूती के साथ पकड़े होता और इस बात पर ध्यान रखता कि जो कुछ करे वह इसकी प्रतिष्ठा के विरुद्ध न होने पावे तो आज दुनिया में भूतनाथ तीसरे दर्जे का ऐयार कहा जाता।