की बनिस्बत उन्होंने प्रतिज्ञा भंग करना उत्तम समझा, उस समय मैं भी वहाँ था।
भूतनाथ––(सुरेन्द्रसिंह से हाथ जोड़कर) यदि मुझे आज्ञा हो तो खेमा वगैरह खड़ा करने का इन्तजाम मैं करूँ और समय पर अगवानी के लिए कुछ दूर जाकर अपना कलंकित मुख उनको दिखाऊँ! यद्यपि मैं इस योग्य नहीं हूँ और न वे मेरी सूरत देखना पसन्द ही करेंगे। मगर उनके नमक से पला हुआ यह शरीर उनसे दुरदुराया जाकर भी अपनी प्रतिष्ठा ही समझेगा।
सुरेन्द्रसिंह––ठीक है, मगर उनकी इच्छा के विरुद्ध ऐसा करने की आज्ञा हम नहीं दे सकते। हाँ, यदि तुम अपनी इच्छा से ऐसा करो तो हम रोकना भी उचित नहीं समझेंगे।
ये बातें हो ही रही थी कि जमानिया से राजा गोपालसिंह के कूच करने की इत्तिला मिली, इस तौर पर कि––"किशोरी, कामिनी और लक्ष्मीदेवी वगैरह को लिए राजा गोपालसिंह चले आ रहे हैं।"
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चुनारगढ़ वाली तिलिस्मी इमारत के चारों तरफ छोटे-बड़े सैकड़ों खेमों, डेरों रावटियों और शामियानों की बहार दिखाई दे रही है, जिनमें से बहुतों में लोगों के डेरे पड़ चुके हैं और बहुत अभी तक खाली पड़े हैं। मगर वे भी धीरे-धीरे भर रहे हैं। किशोरी के नाना रणधीरसिंह और किशोरी, कामिनी वगैरह को लिए हुए राजा गोपालसिंह भी आ गए हैं और इन लोगों के साथ कुछ फौजी सिपाही भी आ पहुँचे हैं जो कायदे के साथ रावटियों में डेरा डाले हुए हैं। किशोरी इत्यादि महल में पहुँचा दी गई हैं जिसके सबब से अन्दर तरह-तरह की खुशियाँ मनाई जा रही हैं। राजा गोपालसिंह का डेरा भी तिलिस्मी इमारत के अन्दर ही पड़ा है। राजा वीरेन्द्रसिंह ने उनके लिए अपने कमरे के पास ही एक सुन्दर और सजा हुआ कमरा मुकर्रर कर दिया है, और उनके (गोपालसिंह के) साथी लोग इमारत के बाहर वाले खेमों में उतरे हुए हैं। इसी तरह रणधीरसिंह का भी डेरा इमारत के बाहर उन्हीं के भेजे हुए खेमे में पड़ा है और वे यहाँ पहुँच कर राजा सुरेन्द्रसिंह और वीरेन्द्रसिंह तथा और लोगों से मुलाकात करने के बाद किशोरी और कमला से मिल कर खुश हो चुके हैं और साथ ही इसके भूतनाथ की नजर भी कबूल कर चुके हैं जिसकी उम्मीद भूतनाथ को कुछ भी न थी।
इसी तरह राजा वीरेन्द्रसिंह के बचे हुए ऐयार लोग भी जो यहाँ मौजूद न थे, अब आ गए हैं। यहाँ तक कि रोहतासगढ़ से ज्योतिषीजी का डेरा भी आ गया है और वे भी तिलिस्मी इमारत के बाहर एक खेमे में टिके हुए हैं।
इनके अतिरिक्त कई बड़े-बड़े, रईस जमींदार और महाजन लोग भी गया, रोहतासगढ़, जमानिया और चुनार वगैरह से राजा वीरेन्द्रसिंह को नजर और मुबारक-
च॰ स॰-5-10