पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
188
 

इसका सबब क्या था और वे क्या सोच रहे थे, मगर कम-से-कम इस बात की शर्म तो उनको जरूर ही थी कि वे यहाँ आने के साथ गिरफ्तार हो गये। यह तो नकाबपोशों की मेहरबानी थी कि हथकड़ी और बेड़ी से उनकी खातिर न की गई।

वह नकाबपोश कई रास्तों से घुमाता-फिराता भूतनाथ और देवीसिंह को ऊपर वाली मंजिल में ले गया। जो लोग इन दोनों को गिरफ्तार कर लाए थे, वे भी उनके साथ गये।

जिस कमरे में भूतनाथ और देवीसिंह पहुँचाये गये, वह यद्यपि बहुत बड़ा न था मगर जरूरी और मामूली ढंग के सामान से सजाया हुआ था। कन्दील की रोशनी हो रही थी, जमीन पर साफ-सुथरा फर्श बिछा था और कई तकिए भी रक्खे हुए थे, एक संगमरमर की छोटी चौकी बीच में रक्खी हुई थी और किनारे दो सुन्दर पलंग आराम के लिए बिछे हुए थे।

भूतनाथ और देवी सिंह को खाने-पीने के लिए कई दफा कहा गया, मगर उन दोनों ने इनकार किया अत: लाचार होकर नकाबपोशों ने उन दोनों को आराम करने के लिए उसी जगह छोड़ा और स्वयं उन आदमियों को जो दोनों ऐयारों को गिरफ्तार कर लाये थे, साथ लिए हुए वहाँ से चला गया। जाते समय ये लोग बाहर से दरवाजे की जंजीर बन्द करते गये और इस कमरे में भूतनाथ और देवीसिंह अकेले रह गये।


2

जब दोनों ऐयार उस कमरे में अकेले रह गये, तब थोड़ी देर तक अपनी अवस्था और भूल पर गौर करने के बाद आपस में यों बातें करने लगे––

देवीसिंह––यद्यपि तुम मुझसे और मैं तुमसे छिपकर यहाँ आया मगर यहाँ आने पर वह छिपना बिल्कुल व्यर्थ गया। तुम्हारे गिरफ्तार हो जाने का तो ज्यादा रंज न होना चाहिए क्योंकि तुम्हें अपनी जान की फिक्र पड़ी थी, अतएव अपनी भलाई के लिए तुम यहाँ आये थे और जो कोई किसी तरह का फायदा उठाना चाहता है उसे कुछ-न-कुछ तकलीफ भी जरूर ही भोगनी पड़ती है, मगर मैं तो दिल्लगी ही दिल्लगी में बेवकूफ बन गया। न तो मुझे इन लोगों से कोई मतलब ही था और न यहाँ आए बिना मेरा कुछ हर्ज ही होता था।

भूतनाथ––(मुस्कुरा कर) मगर आने पर आपका भी एक काम निकल आया, क्योंकि यहाँ अपनी स्त्री को देखकर अब किसी तरह भी जाँच किए बिना आप नहीं रह सकते।

देवीसिंह––ठीक है! मगर भूतनाथ, तुम बड़े ही निडर और हौसले के ऐयार हो जो ऐसी अवस्था में भी हँसने और मुस्कुराने से बाज नहीं आते!

भूतनाथ––तो क्या आप ऐसा नहीं कर सकते?