देवीसिंह––अगर बनावट के तौर पर हँसने या मुस्कुराने की जरूरत न पड़े तो मैं ऐसा नहीं कर सकता। मैं इस बात को खूब समझता हूँ कि तुम्हारे जीवट और हौसले की इतनी तरक्की क्योंकर हुई मगर वास्तव तुम निराले ढंग के आदमी हो, सच तो यह है कि तुम्हारी ठीक-ठीक अवस्था जानना कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव है।
भूतनाथ––आपका कहना बहुत ठीक है, मगर तब तक मेरे जीवट और मर्दानगी का अन्दाजा मिलना कठिन है जब तक कि मैं अपने को मुर्दा समझे हुए हूँ, जिस दिन मैं अपने को जिन्दा समझूँगा उस दिन यह बात न रहेगी।
देवीसिंह––तो क्या तुम अभी तक भी अपने को मुर्दा ही समझे हुए हो?
भूतनाथ––बेशक, क्योंकि अब मैं बेइज्जती और बदनामी के साथ जीने को मरने के बराबर समझता हूँ। जिस दिन मैं राजा वीरेन्द्रसिंह का विश्वासपात्र बनने योग्य हो जाऊँगा उस दिन समझूगा कि जी गया। मैं आपसे इस किस्म की बातें कदापि न करता अगर आपको अपना मेहरबान और मददगार न समझता। आप को जयपाल या नकली बलभद्रसिंह की पहली मुलाकात का दिन याद होगा जब आपने मुझ पर मेहरबानी रखने और मुझे अपनाने का शपथपूर्वक इकरार किया था।
देवीसिंह––बेशक मुझे याद है, जब तुम घबराये हुए और बेबसी की अवस्था में थे तब मैंने तुमसे कहा था कि यदि मुझे यह मालूम हो जायगा कि तुम मेरे पिता के घातक हो, जिन पर मेरा बड़ा स्नेह था तब भी मैं तुम्हें इसी तरह मुहब्बत की निगाह से देखूँगा जैसे कि अब मैं देख रहा हूँ[१]। कहो, है न यही बात?
भूतनाथ––बेशक यही शब्द आपने कहे थे।
देवीसिंह––और अब भी मैं उसी बात का इकरार करता हूँ।
भूतनाथ––(प्रसन्नता से) आपकी सचाई पर भी मुझे उतना ही विश्वास है जितना एक और एक दो होने पर!
देवीसिंह––यह बात तो तुम सच नहीं कहते!
भूतनाथ––(चौंक कर) सो कैसे?
देवीसिंह––इसी से कि तुमने भेद की कोई बात आज तक मुझसे नहीं कही, यहाँ तक कि इस जगह आने की इच्छा भी मुझ पर प्रकट न की।
भूतनाथ––(शर्मिन्दगी से सिर नीचा करके) बेशक यह मेरा कसूर है जिसके लिए (हाथ जोड़ कर) मैं आपसे माफी माँगता हूँ, क्योंकि मैं इस बात को अच्छी तरह देख चुका हूँ कि आपने अपनी बात का निर्वाह पूरा-पूरा किया।
देवीसिंह––खैर, अब भी अगर तुम मुझे अपना विश्वासपात्र समझोगे तो मेरे दिल का रंज निकल जायगा, असल तो यह है कि इस मौके पर तुमसे मिलने के लिए ही मैंने यहाँ आने का इरादा भी किया क्योंकि मुझे विश्वास था कि तुम यहाँ जरूर आओगे। खैर अब तुम अपने कौल और इकरार को याद रक्खो और इस समय इन सब बातों को इसी जगह छोड़कर इस बात पर विचार करो कि अब हम लोगों को क्या करना
- ↑ देखिए ग्यारहवें भाग का आखिरी बयान।