पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/२०६

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ठहर जायँ, मैं अन्दर जाकर आप लोगों के लिए चारपाई ले आती हूँ और अपने मालिक तथा लड़कों को भी बुला लाती हूँ!"

देवीसिंह और भूतनाथ ने इस बात को कबूल किया और कहा, "क्या हर्ज है, जाओ मगर जल्दी आना, क्योंकि हम लोग ज्यादा देर तक यहां नहीं ठहर सकते।"

वह औरत मकान के अन्दर चली गई और वे दोनों देर तक बाहर खड़े रह कर उसका इन्तजार करते रहे, यहाँ तक कि घण्टे भर से ज्यादा बीत गया और वह औरत मकान के बाहर न निकली। आखिर भूतनाथ ने उसे पुकारना और चिल्लाना शुरू किया, मगर इसका भी कोई नतीजा न निकला अर्थात् किसी ने भी उसे किसी तरह का जवाब न दिया। तब लाचार होकर वे दोनों मकान के अन्दर घुस गए, फिर भी किसी आदमी की यहाँ तक कि उस औरत की भी सूरत दिखाई न पड़ी। उस छोटी झोंपड़ी में किसी को ढूँढ़ना या पता लगाना कौन कठिन था तो भी दोनों ने बित्ता-बित्ता जमीन देख डाली मगर सिवाय एक सुरंग के और कुछ भी दिखाई न पड़ा। न तो मकान में किसी तरह का असबाब ही था और न चारपाई, बिछौना, कपड़ा-लत्ता या अन्न और बर्तन इत्यादि ही दिखाई पड़ा, अतः लाचार होकर भूतनाथ ने कहा, "बस-बस, हम हम लोगों को उल्लू बनाकर वह इसी सुरंग की राह निकल गई!"

बेवकूफ बनाकर इस तरह उस उस औरत के निकल जाने से दोनों ऐयारों को बड़ा ही अफसोस हुआ। भूतनाथ ने सुरंग के अन्दर घुस कर उस औरत को ढूँढने का इरादा किया। पहले तो इस बात खयाल हुआ कि कहीं उस सुरंग में दो-चार आदमी घुस कर बैठे न हों जो हम लोगों पर बेमौके वार करें, मगर जब अपने तिलिस्मी खंजर का ध्यान आया तो यह खयाल जाता रहा और बेफिक्री के साथ में तिलिस्मी खंजर लिये हुए भूतनाथ उस सुरंग के अन्दर घुसा, पीछे-पीछे देवीसिंह ने भी उसके अन्दर पैर रक्खा।

वह सुरंग लगभग पाँच सौ कदम के लम्बी होगी। उसका दूसरा सिरा घने जंगल अन्दर निकला था। देवीसिंह और भूतनाथ भी उसी सुरंग के अन्दर ही अंदर वहाँ तक चले गये और इन्हें विश्वास हो गया कि अब उस औरत का पता किसी तरह नहीं लग सकता।

इस समय इन दोनों के दिल की क्या कैफियत थी सो वे ही ठीक जानते होंगे, अतः लाचार होकर देवीसिंह ने घर लौट चलने का विचार किया, मगर भूतनाथ ने इस बात को स्वीकार न करके कहा, "इस तरह तकलीफ उठाने और बेइज्जत होने पर भी बिना कुछ काम किए घर लौट चलना मेरे खयाल से उचित नहीं है।"

देवीसिंह––आखिर फिर किया ही क्या जायगा? मुझे इतनी फुरसत नहीं है कि कई दिनों तक बेफिक्री के साथ इन लोगों का पीछा किया करूँ। उधर दरबार की जो कुछ कैफियत है तुम जानते ही हो! ऐसी अवस्था में मालिक की प्रसन्नता का खयाल न करके एक साधारण काम में दूसरी तरफ उलझ रहना मेरे लिए उचित नहीं है।

भूतनाथ––आपका कहना ठीक है मगर इस समय मेरी तबीयत का क्या हाल है, सो भी आप अच्छी तरह समझते होंगे।

देवीसिंह––मेरे खयाल से तुम्हारे लिए कोई ज्यादा तरद्दुद की बात नहीं है।