पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/२०७

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इसके अतिरिक्त घर लौट चलने पर मैं अपनी औरत को देखूँगा, अगर वह मिल गई तो तुम भी अपनी स्त्री की तरफ से बेफिक्र हो जाओगे।

भूतनाथ––अगर आपकी स्त्री घर पर मिल जाय तो भी मेरे दिल का खुटका न जायगा।

देवीसिंह––अपनी स्त्री का हाल लेने के लिए तुम भी अपने आदमियों को भेज सकते हो।

भूतनाथ––यह सब कुछ ठीक है मगर क्या करूँ, इस समय मेरे पेट में अजीब तरह की खिचड़ी पक रही है और क्रोध क्षण-क्षण में बढ़ा ही चला आता है।

देवीसिंह––अगर ऐसा ही है तो जो कुछ तुम्हें उचित जान पड़े सो करो। मैं अकेला ही घर की तरफ लौट जाऊँगा।

भूतनाथ––अगर ऐसा ही कीजिये तो मुझ पर बड़ी कृपा होगी, मगर जब महाराज मेरे बारे में पूछेगे तब क्या जवाब···

देवीसिंह––(बात काट कर) महाराज की तरफ से तुम बेफिक्र रहो, मैं जैसा मुनासिब समझूगा कह-सुन लूँगा, मगर इस बात का वादा कर जाओ कि कितने दिन पर तुम वापस आमोगे या तुम्हारा हाल मुझे कब और क्योंकर मिलेगा?

भूतनाथ––मैं आपसे सिर्फ तीन दिन की छुट्टी लेता हूँ। अगर इससे ज्यादा दिन तक अटकने की नौबत आई तो किसी तरह अपने हाल-चाल की खबर आप तक पहुँचा दूँगा।

देवीसिंह––बहुत अच्छा! (मुस्कुराते हुए) अब आप जाइये और पुनः लात खाने का बन्दोबस्त कीजिए, मैं तो घर की तरफ रवाना होता हूँ, जय माया की!

भूतनाथ––जय माया की!

भूतनाथ को उसी जगह छोड़कर देवीसिंह रवाना हुए और संध्या होने के पहले ही तिलिस्मी इमारत के पास आ पहुँचे।


7

डेरे पर पहुँच कर स्नान करने और पोशाक बदलने के बाद देवीसिंह सबसे पहले राजा वीरेन्द्रसिंह के पास गये और उसी जगह तेजसिंह से भी मुलाकात की। पूछने पर देवीसिंह ने अपना और भूतनाथ का कुल हाल बयान किया जो कि हम ऊपर के बयानों में लिख आये हैं। उस हाल को सुनकर वीरेन्द्र सिंह और तेजसिंह को कई दफा हँसने और ताज्जुब करने का मौका मिला और अन्त में वीरेन्द्रसिंह ने कहा, "अच्छा किया जो तुम भूतनाथ को छोड़कर यहाँ चले आये। तुम्हारे न रहने के कारण नकाबपोशों के आगे हम लोगों को मिन्दा होना पड़ा।"

देवीसिंह––(ताज्जुब से) क्या वे लोग वहाँ आये थे?