पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/२०८

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वीरेन्द्रसिंह––हाँ, वे दोनों अपने मामूली वक्त पर यहाँ आये थे और तुम दोनों का पीछा करने पर ताज्जुब और अफसोस करते थे, साथ ही इसके उन्होंने यह भी कहा था कि वे दोनों ऐयार हमारे मकान तक नहीं पहुँचे।

देवीसिंह––वे लोग जो चाहें सो कहें, मगर मेरा खयाल यही है कि हम दोनों उन्हीं के मकान में गए थे।

वीरेन्द्रसिंह––खैर, जो हो मगर उन नकाबपोशों का यह कहना बहुत ठीक है कि जब हम लोग समय पर अपना हाल आप ही कहने के लिए तैयार हैं, तो आपको हमारा भेद जानने के लिए उद्योग नहीं करना चाहिए!

देवीसिंह––बेशक उनका कहना ठीक है मगर क्या किया जाय, ऐयारों की तबीयत ही ऐसी चंचल होती है कि किसी भेद को जानने के लिए वे देर तक या कई दिनों तक सब नहीं कर सकते। यद्यपि भूतनाथ इस बात को खूब जानता है कि वे दोनों नकाबपोश उसके पक्षपाती हैं और पीछा करके उनका दिल दुखाने का नतीजा शायद अच्छा न निकले मगर फिर भी उसकी तबीयत नहीं मानती, तिस पर कल की बेइज्जती और अपनी स्त्री को वहाँ न देखता तो निःसन्देह मेरे साथ वापस चला आता और उन लोगों का पीछा करने का खयाल अपने दिल से निकाल देता।

तेजसिंह––खैर, कोई चिन्ता नहीं, वे नकाबपोश खुशदिल नेक और हमारे प्रेमी मालूम होते हैं, इसलिए आशा है कि भूतनाथ को अथवा तुम्हारे किसी आदमी को कोई तकलीफ पहुँचाने का खयाल न करेंगे।

वीरेन्द्रसिंह––हमारा भी यही खयाल है। (देवीसिंह से मुस्कुराकर) तुम्हारा दिल भी तो अपनी बीवी साहेबा को देखने के लिए बेताब हो रहा होगा?

देवोसिंह––बेशक मेरे दिल में धुक-धुकी सी लगी हुई है और मैं चाहता हूँ कि किसी तरह आपकी बात पूरी हो तो महल में जाऊँ।

वीरेन्द्रसिंह––मगर हमसे तो तुमने पूछा ही नहीं कि तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारी बीवी महल में थी या नहीं

देवीसिंह––(हँसकर) जी आपसे पूछने की मुझे कोई जरूरत नहीं और न मुझे विश्वास ही है कि आप इस बारे में मुझसे सच बोलेंगे।

वीरेन्द्रसिंह––(हँसकर) खैर, मेरी बातों पर भले विश्वास न करो और महल में जाकर अपनी रानी को देखो। मैं भी उसी जगह पहुँचकर तुम्हें इस बेऐतवारी का मजा चखाता हूँ!

इतना कहकर राजा वीरेन्द्रसिंह उठ खड़े हुए और देवीसिंह भी हँसते हुए वहाँ से चले गये।

महल के अन्दर अपने कमरे में एक कुर्सी पर बैठी चम्पा रोहतासगढ़ की पहाड़ी और किले की तस्वीर दीवार के ऊपर बना रही है और उसकी दो लौंडियाँ हाथ में मोमी शमादान लिए हुए रोशनी दिखा कर इस काम में उसकी मदद कर रही हैं। चम्पा का मुँह दीवार की तरफ और पीठ सदर दरवाजे की तरफ है। दोनों लौंडियाँ भी उसी की तरह दीवार की तरफ देख रही हैं इसलिए चम्पा तथा उसकी लौंडियों को इस बात की