पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/२३२

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भूतनाथ––आप बड़ी जबर्दस्ती करते हैं!

नकाबपोश––जबर्दस्ती करने वाले तो तुम थे, मगर अब क्या हो गया?

भूतनाथ––(तेजी के साथ) मुमकिन है कि मैं अब भी जबर्दस्ती का बर्ताव करूँ। कोई क्या जान सकता है कि तुम लोगों को कौन उठा ले गया?

नकाबपोश––(हँसकर) ठीक है, तुम समझते हो कि यह बात किसी को मालूम न होगी कि हम लोगों को भूतनाथ उठा ले गया है।

भूतनाथ––(जोर देकर) ऐसा ही है, इसके विपरीत भी क्या कोई समझा सकता?

इतने ही में थोड़ी दूर पर से यह आवाज आई, "हाँ, समझा सकता है वौर विश्वास दिला सकता है कि यह बात छिपी हुई नहीं है।"

अब तो भूतनाथ की कुछ विचित्र ही हालत हो गई। वह घबराकर उस तरफ देखने लगा जिधर से एक आवाज आई थी और फुर्ती के साथ अपने आदमियों से बोला, "पकड़ो! जाने न पाये!"

भूतनाथ के आदमी तेजी के साथ उस बोलने वाले की खोज में दौड़ गये, मगर नतीजा कुछ भी न निकला अर्थात् वह आदमी गिरफ्तार न हुआ और भागकर निकल गया। यह हाल देख दोनों नकाबपोशों ने खिलखिला कर हँस दिया और कहा, "क्यों, अब तुम अपनी क्या राय कायम करते हो?"

भूतनाथ––हाँ, मुझे विश्वास हो गया कि आपका यहाँ रहना छिपा नहीं रहा, अथवा हमारे पीछे आपका कोई आदमी यहाँ तक जरूर आया है। इसमें कोई शक नहीं कि आप लोग अपने काम में पक्के हैं कच्चे नहीं। मगर ऐयारी के फन में मैंने आपको दवा लिया।

नकाबपोश––यह दूसरी बात है, तुम ऐयार हो और हम लोग ऐयारी नहीं जानते, मगर इतना होने पर भी तुम हमारे लिए दिन-रात परेशान रहते हो और कुछ करते-धरते नहीं बन पड़ता। मगर भूतनाथ, हम तुमसे फिर भी यही कहते हैं कि हम लोगों के फेर में न पड़ो और कुछ दिन सब तो करो, फिर आप से आप तुम्हें हम लोगों का हाल मालूम हो जायगा। ताज्जुब है कि तुम इतने बड़े ऐयार होकर जल्दबाजी के साथ ऐसी ओछी कार्रवाई करके खुदबखुद अपना काम बिगाड़ने की कोशिश करते हो! उस दिन दरबार में तुम देख चुके हो और जान भी चुके हो कि हम लोग तुम्हारी तरफदारी करते हैं, तुम्हारे ऐबों को छिपाते हैं, और तुम्हें एक विचित्र ढंग से माफी दिलाकर खास महाराज का कृपापात्र बनाना चाहते हैं, फिर क्या सबब है कि तुम हम लोगों का पीछा करके खामखाह हमारा क्रोध बढ़ा रहे हो?

भूतनाथ––(गुस्से को दबाकर नर्मी के साथ) नहीं-नहीं, आप इस बात का गुमान भी न कीजिए कि मैं आप लोगों को दुःख देना चाहता हूँ और···

नकाबपोश––(बात काट के लापरवाही के साथ) दुःख देने की बात मैं नहीं कहता क्योंकि तुम हम लोगों को दुःख दे ही नहीं सकते।

भूतनाथ––खैर, न सही। मगर मैं अपने दिल की बात कहता हूँ कि किसी बुरे