बातों की वाद दिलाये बिना नहीं रह सकता!"
हम नहीं कह सकते कि इस नये आदमी को यहाँ पर आये कितनी देर हुई या यह कब से पत्थरों की आड़ में छिपा हुआ इन दोनों की बातें सुन रहा था, मगर भूतनाथ उसे यकायक अपने सामने देखकर चौंक पड़ा और घबराहट तथा परेशानी के साथ उसकी सूरत देखने लगा। यह देखकर उस आदमी ने जानबूझकर रोशनी के सामने अपनी सूरत कर दी जिसमें पहचानने के लिए भूतनाथ को तकलीफ न करनी पड़े।
यह वही आदमी था जिसे भूतनाथ ने नकाबपोशों के मकान में सूराख के अन्दर से झाँक कर देखा था और जिसने नकाबपोशों के सामने एक बड़ी-सी तस्वीर पेश करके कहा था कि "कृपानाथ, बस मैं इसी का दावा भूतनाथ पर करूँगा।"
इस आदमी को देख कर भूतनाथ पहले से भी ज्यादा घबरा गया। उसके बदन का खून बर्फ की तरह जम गया और उसमें हाथ-पैर हिलाने की ताकत बिल्कुल न रही। उस आदमी ने पुनः कड़क कर भूतनाथ से कहा, "ये नकाबपोश साहब तुम्हारी बात मान कर चाहे चुप रह जायँ, मगर मैं उन बातों को अच्छी तरह याद दिलाए बिना न रहूँगा जिन्हें सुनने की ताकत तुममें नहीं है। अगर तुम इनको दलीपशाह नहीं मानते हो तो मुझे दलीपशाह मानने में तुम्हें कोई उज्र भी न होगा।"
भूतनाथ यद्यपि आश्चर्यमय घटनाओं का शिकार हो रहा था और एक तौर पर खौफ, तरद्दुद, परेशानी और नाउम्मीदी ने उसे चारों तरफ से आकर घेर लिया था, मगर फिर भी उसने कोशिश करके अपने होश-हवास दुरुस्त किये और उस नए आये दलीपशाह की तरफ देख कर कहा, "बहुत खासे! एक दलीपशाह ने तो परेशान कर ही रखा था, अब आप दूसरे दलीपशाह भी आ पहुँचे, थोड़ी देर में कोई तीसरे दलीपशाह भी आ जायेंगे, फिर मैं काहे को किसी से दो बातें कर सकूँगा। (पुराने दलीपशाह की तरफ देख कर) अब बताइये, दलीपशाह आप हैं या ये?"
पुराना दलीपशाह––तुम इतने ही में घबरा गये! हमारे यहाँ जितने भी नकाबपोश हैं, सभी अपना नाम दलीपशाह बताने के लिए तैयार होंगे, मगर तुम्हें अपनी अक्ल से पहचानना चाहिए कि वास्तव में दलीपशाह कौन है।
भूतनाथ––इस कहने का मतलब तो यही है कि आप लोग सच नहीं बोलते?
पुराना दलीपशाह––जो बातें हमने तुमसे कहीं, क्या वे झूठ हैं?
नया दलीपशाह––या मैं जो कुछ कहूँगा वह झूठ होगा! अच्छा सुनो, मैं एक दिन का जिक्र करता हूँ। जब तुम ठीक दोपहर के समय उसी पीतल वाली सन्दूकड़ी को बगल में छिपाये रोहतासगढ़ की तरफ भागे जा रहे थे। जब तुम्हें प्यास लगी तब तुम एक ऊँची जगत वाले कुएँ पर पानी पीने के लिए ठहर गये जिस पर एक पुराने नीम के पेड़ की सुन्दर छाया पड़ रही थी। कुएँ की जगत में नीचे की तरफ एक खुली कोठरी थी और उसमें एक मुसाफिर गर्मी की तकलीफ मिटाने की नीयत से लेटा हुआ तुम्हारे ही बारे में तरह-तरह की बातें सोच रहा था। तुम्हें उस आदमी के वहाँ मौजूद रहने का गुमान भी न था। मगर उसने तुम्हें कुएँ पर जाते हुए देख लिया, अस्तु, वह इस फिक्र में पड़ गया कि तुम्हारी छोटी-सी गठरी में क्या चीज है इसे मालूम करे और अगर उसमें