मदद की, इसमें कोई सन्देह नहीं। हम लोग तिलिस्म का बहुत ज्यादा काम खत्म कर चुके हैं। आशा है कि आज के तीसरे दिन हम दोनों भाई आपकी सेवा में उपस्थित होंगे और इसके बाद जो कुछ तिलिस्म का काम बचा हुआ है, उसे आपकी सेवा में रहकर ही पूरा करेंगे। हम दोनों की इच्छा है कि तब तक आप कैदियों का मुकदमा भी बन्द रखें क्योंकि उसके देखने और सुनने के लिए हम दोनों बेचैन हो रहे हैं। उपस्थित होने पर हम दोनों अपना अनूठा हाल भी अर्ज करेंगे।"
इस चिट्ठी को पढ़कर और यह जान कर सभी प्रसन्न हुए कि अब कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह आना ही चाहते हैं। इसी तरह इस उपन्यास के प्रेमी पाठक भी यह जानकर प्रसन्न होंगे कि अब यह उपन्यास भी शीघ्र ही समाप्त होना चाहता है। अस्तु, कुछ देर तक खुशी के चर्चे होते रहे और इसके बाद पुनः नकाबपोशों से बात-चीत होने लगी––
एक नकाबपोश––भूतनाथ लौट कर आया या नहीं?
तेजसिंह––ताज्जुब है कि अभी तक भूतनाथ नहीं आया। शायद आपके साथियों ने उसे···
नकाबपोश––नहीं-नहीं, हमारे साथी लोग उसे दुःख नहीं देंगे। मुझे तो विश्वास था कि भूतनाथ आ गया होगा, क्योंकि वे दोनों नकाबपोश लौटकर हमारे यहाँ पहुँच गये जिन्हें भूतनाथ गिरफ्तार करके ले गया था। मगर अब शक होता है कि भूतनाथ पुनः किसी फेर में तो नहीं पड़ गया या उसे पुनः हमारे किसी साथी को पकड़ने का शौक तो नहीं हुआ!
तेजसिंह––आपके साथी ने लौटकर अपना हाल तो कहा होगा?
नकाबपोश––जी हाँ, कुछ हाल कहा था, जिससे मालूम हुआ कि उन दोनों को गिरफ्तार करके ले जाने पर भूतनाथ को पछताना पड़ा।
तेजसिंह––क्या आप बता सकते हैं कि क्या-क्या हुआ?
नकाबपोश––बता सकते हैं, मगर यह बात भूतनाथ को नापसन्द होगी, क्योंकि भूतनाथ को उन लोगों ने उसके पुराने ऐबों को बताकर डरा दिया था और इसी सबब से वह उन नकाबपोशों का कुछ बिगाड़ न सका। हाँ, हम लोग उन दोनों नकाबपोशों को अपने साथ यहाँ ले आये हैं यह सोचकर कि भूतनाथ यहाँ आ गया होगा, अतः उनका मुकाबला हुजूर के सामने करा दिया जायेगा।
तेजसिंह––हाँ! वे दोनों नकाबपोश कहाँ हैं?
नकाबपोश––बाहर फाटक पर उन्हें छोड़ आया हूँ। किसी को हुक्म दिया जाये, उन्हें भीतर बुला लाये।
इशारा पाते ही एक चोबदार उन्हें बुलाने के लिए चला गया, और उसी समय भूतनाथ भी दरबार में हाजिर होता दिखाई दिया। कौतुक की निगाह से सबने भूतनाथ को देखा भूतनाथ ने राबको सलाम किया और आज्ञानुसार देवीसिंह के बगल में बैठ गया।
जिस समय भूतनाथ इस इमारत की ड्योढ़ी पर आया था उसी समय उन दोनों नकाबपोशों को फाटक पर टहलता हुआ देखकर चौंक पड़ा था। यद्यपि उन दोनों के चेहरे