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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/२४१

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नकाब से खाली न थे, मगर फिर भी भूतनाथ ने उन्हें पहचान लिया कि ये दोनों वही नकाबपोश हैं, जिन्हें हम फँसा ले गये थे। अपने धड़कते कलेजे और परेशान दिमाग को लिए हुए भूतनाथ फाटक के अन्दर चला गया और दरबार में हाजिर होकर उसने दोनों सरदार नकाबपोशों को देखा।

एक नकाबपोश––कहो भूतनाथ, अच्छे तो हो?

भूतनाथ––हुजूर लोगों के इकबाल से जिन्दा हूँ, मगर दिन-रात इसी सोच में पड़ा रहता हूँ कि प्रायश्चित्त करने या क्षमा माँगने से ईश्वर भी अपने भक्तों के पापों को भुलाकर क्षमा कर देता है परन्तु मनुष्यों में वह बात क्यों नहीं पाई जाती!

नकाबपोश––जो लोग ईश्वर के सच्चे भक्त हैं, और जो निर्गुण और सगुण सर्वशक्तिमान् जगदीश्वर का भरोसा रखते हैं, वे जीवमात्र के साथ वैसा ही बर्ताव करते हैं, जैसा ईश्वर चाहता है या जैसीकि हरि-इच्छा समझी जाती है। अगर तुमने सच्चे दिल से परमात्मा से क्षमा माँग ली और अब तुम्हारी नीयत साफ है तो तुम्हें किसी तरह का दुःख नहीं मिल सकता। अगर कुछ मिलता है तो इसका कारण तुम्हारे चित्त का विकार है। तुम्हारे चित्त में अभी तक शान्ति नहीं हुई और तुम एकाग्र होकर उचित कार्यों की तरफ ध्यान नहीं देते, इसलिए तुम्हें सुख प्राप्त नहीं होता। अब हमारा कहना इतना ही है कि तुम शान्ति के स्वरूप बनो और ज्यादा खोज-बीन के फेर में न पड़ो। यदि तुम इस बात को मानोगे, तो निःसन्देह अच्छे रहोगे, और तुम्हें किसी तरह का कष्ट न होगा।

भूतनाथ––निःसन्देह आप उचित कहते हैं।

देवीसिंह––भूतनाथ, तुम्हें यह सुनकर प्रसन्न होना चाहिए कि दो ही तीन दिन में कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह आने वाले हैं।

भूतनाथ––(ताज्जुब से) यह कैसे मालूम हुआ?

देवीसिंह––उनकी चिट्ठी आई।

भूतनाथ––कौन लाया है?

देवीसिंह––(नकाबपोशों की तरफ बताकर) ये ही लाये हैं।

भूतनाथ––क्या मैं उस चिट्ठी को देख सकता हूँ?

देवीसिंह––अवश्य।

इतना कहकर देवीसिंह ने कुँअर इन्द्रजीतसिंह की चिट्ठी भूतनाथ के हाथ में दे दी, और भूतनाथ ने प्रसन्नता के साथ पढ़कर कहा, "अब सब बखेड़ा तय हो जायेगा!"

जीतसिंह––(महाराज का इशारा पाकर भूतनाथ से) भूतनाथ, तुम्हें महाराज की तरफ से किसी तरह का खौफ नहीं करना चाहिए, क्योंकि महाराज आज्ञा दे चुके हैं कि तुम्हारे ऐबों पर ध्यान न देंगे और देवीसिंह, जिन्हें महाराज अपना अंग समझते हैं, तुम्हें अपने भाई के बराबर मानते है। अच्छा, अब यह बताओ कि तुम्हारे लौट आने में इतना विलम्ब क्यों हुआ, क्योंकि जिन दो नकाबपोशों को तुम गिरफ्तार करके ले गये थे उन्हें अपने घर लौटे दो दिन हो गए।

भूतनाथ कुछ जवाब देना ही चाहता था कि वे दोनों नकाबपोश भी हाजिर हुए जिन्हें बुलाने के लिए चोबदार गया था। जब वे दोनों सबको सलाम करके आज्ञानुसार