पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/३८

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यारअली––अब उसने हम लोगों के साथ यह नेकी का बर्ताव क्यों किया?

इतने ही में ऊपर से आवाज आई, "दरवाजा खोलने वाला मैं हूँ।"

सभी ने घबराकर ऊपर की तरफ देखा। एक आदमी मुँह पर नकाब डाले बरामदे से झाँकता हुआ दिखाई दिया। कुबेरसिंह ने उससे पूछा, "तुम कौन हो?"

नकाबपोश––मैं इस तिलिस्म का दारोगा हूँ।

मायारानी––इस तिलिस्म का दारोगा तो राजा वीरेन्द्रसिंह के कब्जे में है।

नकाबपोश––वह तुम्हारा दारोगा था और मैं राजा गोपालसिंह का दारोगा हूँ,

आज कल यह बाग मेरे ही कब्जे में है।

मायारानी––जिस समय हम लोग यहाँ आये, तुम कहाँ थे?

नकाबपोश––इसी बाग में।

मायारानी––फिर हम लोगों को रोका क्यों नहीं?

नकाबपोश––रोकने की जरूरत ही क्या थी? मैं जानता ही था कि तुम लोग अपने पैर में आप कुल्हाड़ी मार रहे हो। तुम लोगों की बेबकूफी पर मुझे हँसी आती है।

मायारानी––बेबकूफी काहे की?

नकाबसिंह––एक तो यही कि तुम लोगों ने इतनी फौज को बाग के अन्दर घुसेड़ तो लिया, मगर यह न सोचा कि इतने आदमी यहाँ आकर खायेंगे क्या? अगर घास और पेड़-पत्तों को भी खाकर गुजारा किया, चाहें तो भी दो-एक दिन से ज्यादा का काम नहीं चल सकता। क्या तुम लोगों ने समझा था कि बाग में पहुँचते ही राजा गोपालसिंह को मार लेंगे?

मायारानी––गोपालसिंह को तो हम लोगों ने मार ही लिया, इसमें शक ही क्या है? बाकी रही हमारी फौज, सो एक दिन का खाना अपने साथ रखती है, कल तो हम लोग इस बाग के बाहर हो ही जायेंगे।

नकाबपोश––दोनों बातें शेखचिल्ली की-सी हैं। न तो राजा गोपालसिंह का तुम लोग कुछ बिगाड़ सकते हो और न इस बाग के बाहर की हवा ही खा सकते हो।

मायारानी––तो क्या गोपालसिंह किसी दूसरी राह से निकल जायेंगे?

नकाबपोश––बेशक।

मायारानी––और हम लोग बाहर न जा सकेंगे?

नकाबपोश––कदापि नहीं, क्योंकि मैंने सब दरवाजे अच्छी तरह बन्द कर दिए हैं। तुम तो तिलिस्म की रानी बनने का दावा व्यर्थ ही कर रही हो! तुम्हें तो यहाँ का हाल रुपये में एक पैसा भी नहीं मालूम है। अभी मैंने तुम लोगों के उतरने की राह रोक दी थी, सो तुम्हारे किये कुछ भी न बन पड़ा! जब तुम लोग छत पर थे, पचीस आदमी तुम्हारे सामने से होकर नीचे चले आये, अगर तुम्हें तिलिस्म की रानी होने का दावा था तो उन्हें रोक लेती! मगर राजा साहब के हौसले को देखो कि तुम लोगों के यहाँ आने की खबर पाकर भी अकेले सिर्फ भैरोंसिंह को साथ लेकर इस बाग में चले आए?

मायारानी––उन्हें हमारे आने की खबर कैसे मिली?

नकाबपोश––(जोर से हँसकर) इसके जवाब में तो इतना ही कहना काफी है कि