पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/४३

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वह कौन था?

आनन्दसिंह––जी नहीं।

इन्द्रजीतसिंह––तब तुम्हें कैसे विश्वास हुआ कि यह राजा गोपालसिंह ही हैं? जब चेहरे पर से नकाब हटाकर देखा ही था तो पानी से मुँह धोकर भी देख लेना था? क्या तुम भूल गये कि राजा गोपालसिंह के पास भी इसी तरह का तिलिस्मी खंजर मौजूद है अतः उनके ऊपर इस खंजर का असर क्यों होने लगी थी?

आनन्दसिंह––(सिर नीचा करके) बेशक मुझसे भूल हुई!

इन्द्रजीतसिंह––भारी भूल हुई! (छोटे बाग की तरफ बताकर) देखो, यहाँ पाँच राजा गोपालसिंह हैं! क्या तुम कह सकते हो कि ये पाँचों राजा गोपालसिंह हैं?

आनन्दसिंह ने उस छोटे बगीचे की तरफ झाँककर देखा और‌ कहा, "बेशक मामला गड़बड़ है!

इन्द्रजीतसिंह––खैर, अब तो हमें लौटना ही पड़ेगा, हम चाहते थे इन सभी का कुछ भेद मालूम करें, मगर खैर।

इतना कहकर इन्द्रजीतसिंह लौट पड़े और उस कमरे को लाँघकर दूसरे कमरे में पहुँचे जिसमें वे सातों खिड़कियाँ थीं। यकायक इन्द्रजीतसिंह की निगाह एक लिफाफे पर पड़ी जिसे उन्होंने उठा लिया और चिराग के पास ले जाकर पढ़ा। लिफाफा बन्द था और उस पर यह लिखा हुआ था––"इन्द्रजीतसिंह आनन्दसिंह जोग लिखी गोपालसिंह ।"

कुमार ने लिफाफा फाड़कर चिट्ठी निकाली और देखते ही कहा, "इस चिट्ठी पर किसी तरह का शक नहीं हो सकता, बेशक यह भाई साहब के हाथ की लिखी है और मामूली निशान भी है।" इसके बाद वे चिट्ठी पढ़ने लगे।

आनन्दसिंह ने देखा कि चिट्ठी पढ़ते-पढ़ते इन्द्रजीतसिंह के चेहरे का रंग कई दफे बदला और जैसे-जैसे पढ़ते जाते थे रंज की निशानी बढ़ती जाती थी। वे जब कुल चिट्ठी पढ़ चुके तो एक लम्बी साँस लेकर बोले, "अफसोस, बहुत बड़ी भूल हुई।" और वह चिट्ठी पढ़ने के लिए आनन्दसिंह के हाथ में दे दी।

आनन्दसिंह ने चिट्ठी पढ़ी, यह लिखा हुआ था––

"किशोरी, कामिनी, लक्ष्मीदेवी, कमला, लाड़िली और इन्दिरा को आपके पास तिलिस्म में भेजते हैं। देखिये इन्हें सम्हालिए और एक क्षण के लिए भी इनसे अलग न होइए। मुन्दर हमारे तिलिस्मी बाग में घुसी हुई है, हम आठ आना उसके कब्जे में आ गये हैं। लीला ने धोखा देकर हमारे कुछ भेद मालूम कर लिए जिसका सबब और पूरा-पूरा हाल लक्ष्मीदेवी या कमलिनी की जुबानी आपको मालूम होगा जिन्हें हमने सब-कुछ बता और समझा दिया है। कई बातों के खयाल से सभी को बेहोश करके कमन्द द्वारा आपके पास पहुँचाते हैं, खबरदार, एक क्षण के लिए भी इन लोगों से अलग न हों और किसी बनावटी गोपालसिंह का विश्वास न करें। आज कम-से-कम बीस पच्चीस आदमी गोपालसिंह बने हुए कार्रवाई कर रहे हैं। हम जरा तर दुद में पड़े हुए हैं मगर